“बीज के अंकुरण से ही पौधा बनता है जो धीरे – धीरे विशाल वृक्ष का रुप धारण करता है|
” नदि जब अपने उदगम स्थल से निकलती है तो उसका स्वरुप एकदम छोटा होता है लेकिन धीरे – धीरे जब वह आगे बड़ती है उसका वृहद स्वरूप सामने आता है|
” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने श्री सम्मेदशिखर तीर्थ के लिए चंद्रगिरी से विहार करने के उपरांत राजनांदगांव में प्रातःकालीन धर्म सभा में व्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि राजस्थान से आचार्य गुरूदेव विद्यासागर जी महामुनिराज अकेले ही चले थे धीरे – धीरे उनका संघ बड़ता गया और जब 1983 में श्री सम्मेदशिखर जी पहुंचे तो वहां पर क्षुल्लक एवं ऐलक दीक्षा हुई तत्पश्चात ईसरी में मुनिदीक्षा संपन्न होकर सन्1984 में आचार्य गुरूदेव विद्यासागर जी महा मुनिराज के साथ नव दीक्षित मुनि के रुप में राजनांदगांव आया था और उस समय लगभग 15 दिन का प्रवास रहा था|

उन्होंने कहा कि उस समय का राजनांदगांव मध्यप्रदेश का अंग हुआ करता था और आज छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों में “राजनांदगांव” का नाम है” मुनि श्री ने कहा कि यह भी आचार्य श्री के उन छत्तीस गुणों का ही प्रभाव था जो अलग से छत्तीसगड़ राज्य बन गया। मुनि श्री ने उस समय की समृतियों को ताजा करते हुये कहा कि आचार्य श्री का उस समय दुर्ग में तीस दिन का प्रवास रहा था तथा दुर्ग से नवीन कुमार वर्तमान में मुनि श्री प्रमाणसागर जी,शारदा जो कि उज्जवलमति माताजी है तथा ऋषभ पाटनी जो कि क्षु.प्रसन्न सागर थे| इन तीनों ने राजनांदगांव से ही “व्रत” लेकर आगे बड़े। उन्होंने कहा जैसे “बीज” की यात्रा धीरे धीरे आगे बढ़ विशाल वटवृक्ष का रुप धारण कर लेता है, “बूंद” जैसे सागर बन जाती हे,अणु जैसे ब्रह्माण्ड का स्वरुप धारण कर लेता है,उसी प्रकार हमें अपनी आत्मा को वृहद स्वरूप देकर परमात्मा बनाने का पुरुषार्थ करना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि परमात्मा कोई अलग नहीं है हमारी तुम्हारी आत्मा ही पवित्र होकर के परम आत्मा बनती है| मुनि श्री ने “प्रकृति” “विकृति” तथा “संस्कृति”इन तीन शव्दों की व्याख्या करते हुये कहा कि दूध का दूध के रुप में पड़े रहना अर्थात अपने स्वभाव में बने रहना “प्रकृति” है, वहीँ दूध का फट जाना “विकृति” है और दूध को जमाकर उसका दही बना मंथन कर उससे नवनीत प्राप्त कर लेना हमारी भारतीय “संस्कृति” है| उन्होंने कहा एक गृहस्थ अपनी संस्कृति का पालन करता है। उन्होंने कहा कि आप सभी के जीवन में “समयसार” आऐ और निराकुलता के साथ यह आत्मा शुद्ध “परमात्म तत्व” को प्राप्त करे। मंच पर मुनि श्री पवित्रसागर महाराज, ऐलक श्री निश्चयसागर महाराज, ऐलक श्री निजानंद सागर महाराज सहित क्षु. श्री संयम सागर महाराज विराजमान थे।प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख निशांत जैन ने बताया प्रातःकालीन बेला में मुनि संघ का राजनांदगांव में आगमन हुआ सकल जैन समाज राजनांदगांव ने भव्य मंगल आगवानी की। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन तथा आचार्य श्री समयसागर महाराज के अर्घ समर्पित कर मंगलाचरण से हुआ| इस अवसर पर दुर्ग, भिलाई, रायपुर की जैन समाज ने मुनि संघ को श्री फल अर्पित कर पधारने का अनुरोध किया। इस अवसर पर दि. जैन बड़ा मंदिर मालवीय रोड़ रायपुर के अध्यक्ष यशवंत जैन, महामंत्री सुजीत जैन, महावीर जैन,रवि जैन, विजय जैन के साथ मंदिर की कार्य योजना रखी एवं मुनि संघ के चरणों में श्री फल अर्पित कर रायपुर में बड़ा जैन मंदिर पधारने का अनुरोध किया। कार्यक्रम का संचालन चंद्रकांत जैन ने किया। आज निर्यापक मुनि श्री समतासागर महाराज को पड़गाहन कर आहारदान का सौभाग्य सूर्यकांत चंद्रकांत जैन परिवार राजनांदगांव को प्राप्त हुआ। विहार कराने में संघस्थ बा.ब्र.अनूप भैया, रिंकू भैया,राजेश भैया सुवोध भुसावल, शैलेश जैन दमोह सहित राजनांदगांव तथा रायपुर, दुर्ग, भिलाई के श्रद्धालु साथ चल रहे है।