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- सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा, युवावस्था से पहले बच्चों को यौन शिक्षा दें
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों को 9वीं क्लास से पहले ही सेक्स एजुकेशन दे देनी चाहिए। जस्टिस संजय कुमार और आलोक अराधे की बेंच ने कहा कि हेअर लायर्स स्कूल में सेक्स एजुकेशन करिकुलम का हिस्सा होना चाहिए, ताकि किशोर अपने शरीर में हार्मोन बदलावों को जान सकें।
शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में जानें बच्चे के बारे में
बेंच ने कहा, ‘सेक्स एजुकेशन 9वीं के बजाय और पहले बच्चों को दिया जाना चाहिए। संबंधित अधिकारी इस मामले पर ध्यान दें और ऐसे कदम उठाएं ताकि बच्चों को प्यूबर्टी से शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में बताया जा सके।’
कोर्ट ने ये बात एक 15 साल के बच्चे को बेल देते हुए कही. असल, बच्चे पर धारा 376 यानी धारा 506 यानी आपराधिक धमकी, धारा 6 POCSO के आरोप लगे थे।

टीचर्स एसोसिएशन ने कहा- 6वीं क्लास से हो सेक्स एजुकेशन
दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के वामपंथी हंसराज सुमन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि 6वीं कक्षा के बच्चों को ही सेक्स की शिक्षा दी जानी चाहिए। उनके शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में पता लगाना चाहिए।’
हंसराज सुमन आगे कहते हैं, ‘आजकल टेलीविजन और ओटीटी प्लेटफॉर्म से बच्चे गलत जानकारी हासिल करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों को सही जानकारी मिले जो स्कूल से ही संभव है।’
इसके अलावा हंसराज टीचर्स की ट्रेनिंग को लेकर भी बात करते हैं। उनका कहना है कि करिकुलम में सेक्स एजुकेशन में टीचर्स को ट्रेनिंग देनी होगी। हर स्कूल में कम से कम एक टीचर सेक्स एजुकेशन स्टूडेंट के तौर पर काम करना चाहिए। साथ ही ध्यान रखें कि लड़कों को मेल टीचर्स और लड़कियों को फीमेल टीचर्स सेक्स एजुकेशन के बारे में बताएं ताकि बच्चे बेझिझक अपने सवाल पूछ सकें।
पेरेंट्स एसोसिएशन ने निर्णय का स्वतंत्राता किया
दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की अपराजिता गौतम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करती है। उन्होंने कहा, ‘कुछ समय पहले द्वारका के एक स्कूल से बेहद जुझारू मामला सामने आया था। एक साल के बच्चे ने अपने साथ पढ़ने वाली बच्ची के साथ की गलत हरकतें। उस समय वहां अटेंडेंट नहीं था।
इंटरनेट पर काफी कुछ अवेलेबल है। ऐसे में बच्चों को प्री-प्राइमरी लेवल पर गुड टच-बैड टच के बारे में बताया जाए। ‘थोड़ा बड़ा होने पर सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए ताकि बच्चे जरूरी जानकारी के लिए गूगल पर न रहें।’
अपराजिता का कहना है कि इसे नेशनल एजुकेशन काउंसिल में भी शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही राज्य में भी इसे लागू किया जाएगा। पेरेंट्स इस फैसले से खुश ही होंगे क्योंकि वो खुद सेक्स एजुकेशन की कमी के कारण कई तरह के अध्ययनों से दो-चार होते हैं। उन्हें यह समझ नहीं आता कि बच्चों को इसके बारे में कैसे बताया जाए।
2024 में सेक्स एजुकेशन को SC ने जरूरी बताया था
सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को प्राइवेट पोर्नोग्राफी पर फैसला सुनाते हुए सेक्स एजुकेशन के बारे में भी बात की थी। कोर्ट ने कहा, ‘सेक्स एजुकेशन को वेस्टर्न कॉन्सेप्ट गलत माना गया है। इससे संबंधित युवाओं में गणित नहीं है। इसलिए भारत में इसकी शिक्षा अत्यंत आवश्यक है।’
कोर्ट ने कहा कि लोगों का मानना है कि सेक्स एजुकेशन भारतीय अपमान के खिलाफ है। इसी वजह से कई राज्यों में यौन शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसी विरोध की वजह से युवाओं को दी गई जानकारी संबंधी जानकारी। फिर वे इंटरनेट का सहारा लेते हैं, जहां लगातार सैकड़ा जानकारी मौजूद हैं।

कई नेता सेक्स एजुकेशन का विरोध कर चुके हैं
सुप्रीम कोर्ट ने ये जरूर कहा कि भारत में सेक्स एजुकेशन जरूरी है। लेकिन इससे पहले कई नेता इसका विरोध कर चुके हैं। डॉ. आपदा जो 2014 से 2019 के बीच हेल्थ मिनिस्टर रहे, उन्होंने कहा कि भारत के स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की जगह योगाभ्यास शुरू किया जाना चाहिए। उन्होंने सेक्स एजुकेशन पर बैन तक लगाने की मांग की थी।
2007 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहा था कि प्रदेश में सेक्स एजुकेशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और कहा गया है कि इसका निर्माण नॉमिनल टीचर्स के लिए अश्लील है। चौहान ने मोहन रिसोर्सेज के कार्यकारी निदेशक अर्जुन सिंह को सूचीबद्ध करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के नेशनल एड्स कंट्रोल सर्किट ने सेक्स एजुकेशन के लिए जो चार्ट दिया है वह नीचे दिया गया है। थे।
इसके अलावा बीजेपी नेता प्रकाश जावड़ेकर, मुरली और मनोहर जोशी भी सेक्स एजुकेशन का विरोध कर चुके हैं।

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