डोंगरगढ़ : “महापुरुषों की सोच वहाँ से शुरु होती है, जहाँ हमारी सोच समाप्त हो जाती है”
- निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीरसागर महाराज
“गहराई के बगैर कोई भी ऊंचाई टिकाऊ नहीं हो सकती” आचार्य श्री के व्यक्तित्त्व की ऊंचाई जो हमें आपको दिखाई दे रही है उसका कारण उनके विचारों की गहराई है” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री ने दिखावे को कभी पसंद नहीं किया उन्होंने करने पर भरोसा रखा गुरवर का जीवन प्रयोजन प्रयोगधर्मी रहा प्रारंभ से ही उनके अपने ऊपर, संघ के ऊपर तथा समाज के ऊपर जैन तथा जैनेत्तर, पढ़े लिखे ,बिना पढ़े लिखे प्रयोग किये तथा उनके प्रयोग फिल्टर होकर बड़ते गये तथा सफलता मिलती चली गई यही कारण है कि समूचे देश और पुरी दुनिया ने उनके विचारों को स्वीकार किया और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुये। मुनि श्री ने कहा कि महात्मागांधी अपने प्रयोगधर्मी स्वभाव के कारण ही विश्व प्रसिद्ध हुये थे तो आचार्य गुरुदेव तो उससे भी एक कदम आगे प्रयोग धर्मी थे|
उन्होंने कहा कि जब आचार्य श्री हम लोगों को कोई नयी बात प्रयोग करने को कहते थे तो हम लोगों को कठिन लगने लगता था|
तो आचार्य गुरुदेव कहते थे कि यह आप लोगों को सोचने की जरुरत नहीं है सब सोच लिया गया है आप लोग तो करना शुरु करो मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री ने आयुर्वेद का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य का क्षेत्र न जाने कितने तरीकों से उन्होंने नये नये प्रयोग कराये और इसमें उनको सफलता मिली|
मुनि श्री ने कहा सुनने सुनाने को बहुत कुछ है लेकिन समय की अपनी मर्यादा है| गु
रुदेव की समाधि पर चारों ओर से लोग आ रहे है और सभी की भावनायें इस समाधि केंद्र से जुड़ी हुई है। इस अवसर पर निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी महाराज ने कहा कि सारी दुनिया जो सोच रही थी आचार्य भगवन् की सोच उससे बहुत ऊपर थी |
जो साधना आचार्य गुरुदेव ने की उस साधना की तो किसी को कानोंकान खबर ही नहीं होने दी।
“महापुरुषों की सोच वहाँ से शुरु होती है, जहाँ हमारी सोच समाप्त हो जाती है” उनकी दृष्टि आसमान को छू रही थी लेकिन हम सब संकीर्ण बुद्धि वाले बहुत सीमित ही देख और सोच पाते है।
मुनि श्री ने कहा कि जो महापुरुष होते है उनके विचार कल्पनातीत होते है|
आचार्य भगवन् ने उन क्रूर और खुंखार कैदियों के विषय में सोचा जिनके बारे में कोई मिलना तो दूर बात करना भी पसंद नही करता|
प्रायः जब भी “सम्यक् दर्शन” की बात करते है तो हम लोग शास्त्र खोलकर बैठ जाते है जबकि आचार्य भगवन ने “सक्रिय सम्यक्त्व दर्शन की मात्र बात ही नहीं की उन्होंने उसको जी करके बताया है” मुनि श्री ने कहा कि जो व्यक्ति ऐसे लोगों के विषय में सोच सकता है समझना वह छोटा नहीं है उन्होंने आचार्य भगवन् का एक हायकू “दुखी जग को, तज कैसे, तो जाओ मोक्ष” को सुनाते हुये कहा कि जो करूणा आचार्य भगवन् की झलक रही है|
उन्हें इस संसार को छोड़कर के जाने में भी कष्ट का अनुभव हो रहा है। मुनि श्री ने कहा कि मोक्षमार्ग में कदम बढाने वाला हर श्रावक समाधि मरण की ही भावना भाता है|
आसमान में अरबों खरबों ताराऐं वह प्रकाश पैदा नहीं कर पाते वह एक चंद्रमा पैदा करता है |
ऐसा नहीं है कि ताराओं में प्रकाश पुंज नहीं होता रोशनी तो उनके भीतर भी है लेकिन उनकी रोशनी स्वंय तक सीमित रहने वाली है मुनि श्री ने कहा कि जैसे चंद्रमा के प्रकाश में कयीओं को राहत मिल जाती है उसी प्रकार आचार्य भगवन् थे जो स्वयं तो प्रकाशित थे ही बल्कि दूसरों को प्रकाशित करने में, दूसरों के जीने में विश्वास रखते थे, ऐसा जीव ही तीर्थंकर प्रकृति को बांधने वाला होता है|
मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री हमेशा कहा करते थे कि जो प्राणी मात्र के विषय में सोचता है तथा उनके कल्याण के विषय में सोचता है वही व्यक्ति ऊपर उठता है” आज ऐसा व्यक्ति हमारे बीच से निकल जाऐ तो समझना उस अमावस की रात्री है जिसमें तारे तो नजर आ रहे है लेकिन चंद्रमा नजर नहीं आता |
वही स्थिति आज है आज संघ के सैकड़ों साधू है आर्यिकाऐं है, त्यागी व्रती है, क्षुल्लक है, प्रतिमाधारी श्रावक है, श्राविकाऐं है, सब तो है उनमें कोई कमी नहीं लेकिन जो कमी है वह उस चांद की है|
इतने सारे लोग मिलकर के भी चरण रज के धूल बराबर नहीं |
दुनिया कहती है किसी के जाने से क्या फरक पड़ता है|
बहुत फर्क पड़ता है जमीन आसमान का अंतर होता है|
जो कार्य हम सामुहिक रुप से करने में कठनाई का अनुभव करते है वह आचार्य भगवन के सामने उनकी इच्छा शक्ती और तीव्र साधना के आगे अपने आप सब कुछ होता चला जाता था|
उनकी अपाय विजय धर्म ध्यान के कारण कितने देवी देवताओं की दिव्य शक्तियाँ लगी रहती थी और उन्ही शक्तियों के बल पर असंभव से असंभव कार्य भी संपन्न होते चले गये। मुनि श्री ने कहा कि जो महापुरुष होते है वह मात्र अपने परिवार, खानदान तथा मानव जाति के विषय में ही नहीं सोचता बल्कि प्राणीमात्र के विषय में सोचने वाला होता है|
उसकी दृष्टि में कोई भेदभाव नहीं होता उसकी दृष्टि में तो जीवमात्र होता है उसकी दृष्टि में पर्याय मात्र नहीं होती उसकी दृष्टी द्रव्य से हटकर आत्मद्रव्य की ओर चली जाती है|
वह सभी जीवों को अपने समान समझता है तथा सारे भेदभाव समाप्त हो जाते है| इसी को अपाय विजय धर्म ध्यान कहते है। राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं क्षेत्रीय प्रचार प्रसार प्रमुख निशांत जैन ने बताया प्रातःकाल मूलनायक भगवान चंद्रप्रभु का अभिषेक एवं मुनि श्री समतासागर महाराज के मुखारविंद से शांति धारा संपन्न हुई एवं समाधि स्थल पर आचार्य श्री के चरणों का अभिषेक निर्यापक मुनि संघ के सानिध्य में संपन्न हुआ तथा दोपहर में इस दिवस आचार्य गुरुदेव ने उपस्थित मुनि श्री समतासागर महाराज, मुनि श्री वीर सागर महाराज को निर्यापक की जिम्मेदारी तथा18 क्षुल्लको का दीक्षा प्रदान की थी| इस अवसर पर वरिष्ठ मुनि श्री पवित्रसागर जी, मुनि श्री आगमसागर जी,मुनि श्री पुनीतसागर जी महाराज के साथ वरिष्ठ आर्यिका गुरुमति माताजी,आर्यिकारत्न दृणमतिमाताजी,आर्यिकारत्न आदर्शमति माताजी सहित समस्त आर्यिकासंघ ऐलक श्री निश्चयसागर ,ऐलक श्री धैर्यसागर ,ऐलक श्री निजानंद सागर,ऐलक श्री स्वागत सागर क्षु. संयम सागर,क्षु. मनन सागर,क्षु.विचार सागर,क्षु.मगनसागर, क्षु.विरलसागर उपस्थित थे एवं उन्होंने अपने संस्मरण को सुनाया। ऐलक श्री धैर्यसागर महाराज ने बताया आचार्य गुरूदेव की समाधि का एक वर्ष पूर्ण हुये द्वतीय चरण अंग्रेजी तारीख से 18 फरबरी को पूर्ण हो जाऐगा उपरोक्त दिवस प्रातःकाल 8:30 बजे आचार्य गुरुदेव के आशीर्वाद से संचालित पांचों प्रतिभास्थलिओं की बहनों द्वारा प्रातः8:30 बजे से आचार्य छत्तीसी विधान तथा दोपहर में 2 बजे से गुरु पूजन तथा विनयांजलि सभा तथा स्मृति महोत्सव सम्मान समारोह का विशेष आयोजन रखा गया है। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख निशांत जैन ने बताया प्रातः काल का संचालन चंद्रकांत जैन ने किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि राहुल जैन (आई ए एस) भारतीय प्रशासनिक सेवा के साथ उपस्थित श्रद्धालुओं ने चरणों का अभिषेक एवं आचार्य श्री की पूजन की| इस अवसर पर रायपुर, भिलाई,दुर्ग,राजनांदगांव,वारासिवनी तथा दूर दराज से आये श्रावक बंधु तथा मुनि श्री वीरसागर महाराज के संघस्थ, बाल ब्र. चाटी, ब्र.विंदु अभिषेक फिरोजाबाद,ब्र. नितिन डिंडोरी सहित ब्र. अनूप भैया,रिंकू भैया,राजेश भेया,ब्र.संदीप भैया आदि उपस्थित थे।चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र के अध्यक्ष किशोर जैन, कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, अनिल जैन,जयकुमार जैन, यतीश जैन, सप्रेम जैन, उपाध्यक्ष राजकुमार मोदी, प्रदीप जैन विश्वपरिवार, नरेन्द्र जैन गुरुकृपा, रीतेश जैन डव्वू, विद्यायतन के अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, निखिल जैन, सोपान जैन, नरेश जैन, अमित जैन, दीपेश जैन सहित समस्त पदाधिकारियों ने समस्त धर्म श्रद्धालुओं से निवेदन किया है कि उपरोक्त कार्यक्रम में पधारकर पुण्यलाभ अर्जित करें। उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी |