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journalism history media role in indian democracy | भारत के अखबारों की कहानी: 1 रुपए 12 आना उधार लेकर शुरू हुआ द हिंदू; कैसे अखबारों ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाया

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12 मिनट पहले

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प्रेस की आज़ादी अनमोल विशेषाधिकार है। जिस देश और कौम के पास यह है, वह सात्विक अर्थों में आज़ाद है। भारत के मीडिया ने यह स्वतंत्रता संग्राम हासिल करने की बात कही है और लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में हर लोकतंत्र को अपनी जिम्मेदारी सौंपी है। आज प्रेस फ्रीडम डे पर पढ़ें देश में मीडिया के विकास की कहानी और देश के प्रमुख अखबारों के बारे में…

टाइम्स ऑफ इंडिया: बॉम्बे के व्यापारिक समुदाय की शुरुआत हुई

3 नवंबर 1838 को बॉम्बे टाइम्स और जर्नल ऑफ कैमर्स के नाम से अखबार की शुरुआत हुई। मुंबई के व्यापारिक समुदाय के लिए अखबार था। शनिवार-बुधवार को प्रकाशित हुआ था। 1850 से दैनिक प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 1861 में इसे टाइम्स ऑफ इंडिया नाम मिला।

1892 में इसे थॉमस ज्वेल बेनेट और फ्रैंक मॉरिस कोलमेन ने खरीदा। 1946 में उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया ने इसे खरीदा। इसके बाद उनकी सामुहिक महासभा शांति प्रसाद जैन ने कमान संभाली। टैब से यह जैन परिवार द्वारा संचालित है।

द : छह युवाओं ने 1 रुपये 12 का ऋण ऋण लेना शुरू किया था

बात 1878 की है. एंग्लो-इंडियन प्रेस मद्रास उच्च न्यायालय के जजों की बेंच में सर टी. मुथुस्वामी अय्यर को इसके खिलाफ शामिल किया गया था। इस पर लाॅ के चार छात्रों और दो बल्लेबाजों ने इटली वीक से ‘द हिंदू’ अखबार की शुरुआत की।

23 वर्ष के शिक्षक जी. सुब्रमण्यम अय्यर संपादक और 21 वर्ष के शिक्षक एम. वीर राघव ऑटोमोबाइलिंग प्रबंधन थे। 1 रुपये 12 आने की जगह से हुई थी शुरुआत। 1905 में एस. कस्तूरी ने इसे ले लिया। टैब से अखबार कस्तूरी परिवार के पास है।

आनंद बाज़ार: कट्टरपंथियों के कारण अंग्रेज़ों के लिए चुनौती बनी हुई थी

1876 ​​में जेसोर (अब बांग्लादेश) में इस डोमिनिक भाषा का अखबार शुरू हुआ। शिशिर कुमार घोष और तुषार कांति घोष ने इसकी शुरुआत की। अखबार नहीं चला तो बंद कर दिया। 1922 में सुरेश चंद्र मजूमदार और संपादक नोबेल कुमार सरकार ने इसे फिर से शुरू किया।

पहला संस्करण लाल दुकान से छापा गया। कट्टर राष्ट्रभक्तों के कारण यह अंग्रेज़ों के लिए चुनौती बन गया। 1931 में इस पर कुछ महीनों के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन यह पहले से अधिक मजबूत होकर वापस आ गया।

मलयाला मनोरमा: त्रावणकोर दीवान के खिलाफ खबर छापी तो कागज़ात हासिल

22 मार्च 1890 को मलयाला मनोरमा का पहला अंक केरल के कोट्टायम में प्रकाशित हुआ था। वर्गीज़ मापिल्लई पहले संपादक थे। चार खंडों का साप्ताहिक अखबार शनिवार को छपा था। 1928 में यह डेली पेपर बना।

1938 में त्रावणकोर राज्य में आतंकवादियों के ख़िलाफ़ ख़बर आने पर इसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया था। भारत की आज़ादी और आज़ादी के पतन के बाद 1947 में मलयाला मनोरमा का नियमित प्रकाशन फिर से शुरू हुआ। ‘मनोरमा ईयर बुक’ के लिए आज इसे देश भर में जाना जाता है।

नोट: सरोज के सलाम की खबर छापी तो अखबार पर लगी रोक

18 मार्च 1923 को पहली बार कोज़ोकोड से प्रकाशित हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी के.पी.केशव मेनन संपादक थे। राष्ट्रीय आंदोलन की आवाज बुलंद करने के कारण इस अखबार पर रोक, प्रतिबंध, भ्रष्टाचार का दबाव बनाया जा रहा है।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कोच्चि में महिलाओं के साथ यूरोपीय सैनिकों के समर्थन पर लेख छपा तो सरकार ने आरक्षण पर रोक लगा दी, लेकिन भारी विरोध के कारण रोक हटा दी गई। आज 16 शहरों से यह अखबार प्रकाशित हुआ है।

इंडियन टाइम्स: आज़ादी की लड़ाई के लिए अकाल्डियों की शुरुआत हुई

1924 में अकाली दल शिरोमणि के संस्थापक सुंदर सिंह लायलपुरी ने आजादी की लड़ाई में मदद के लिए अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स की शुरुआत की। अंधभक्तों को इसमें दिक्कत होने लगी तो गांधी जी के अवलोकन पर पंडित मदन मोहन इंक्वायरी ने 1925 में लाला लाजपत राय, जेडी बिरला की मदद से 40 हजार रुपये की मदद से इसे कुछ समय के लिए लिया।

1933 में जेडी बिड़ला ने इसे ले लिया। गांधी जी के पुत्र देवीदास गांधी भी 1937 से 1957 तक इसके सहायक उपकरण रहे।

इंडियन एक्सप्रेस: ​​विस्थापित खाली छोड़ दिया गया विरोध था

5 सितम्बर 1932 को आयुर्वेदिक चिकित्सक पी. वरदराजू नायडू ने मद्रास में इंडियन एक्सप्रेस की शुरुआत की। उन्हें दक्षिण भारत का तिलक कहा जाता था। वित्तीय संकट के कारण 1939 में मेमोरियल गोयनका ने इसे ले लिया।

ट्रैवेनकोर और मैसूर राजघरानों का राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति नकारात्मक नजरिया था। इसके खिलाफ लेख पर कुछ समय के लिए अखबार पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। 1975 में विद्रोह में इंडियन एक्सप्रेस ने सेंसरशिप के ख़िलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।

यह तस्वीर देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमी व्यारावाला की है।  होमी और अन्य फोटो जर्नलिस्ट प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की फोटो लेते दिख रहे हैं।

यह तस्वीर देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमी व्यारावाला की है। होमी और अन्य फोटो जर्नलिस्ट प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की फोटो लेते दिख रहे हैं।

दैनिक जागरण : गांधी जी के कथन का तीन माह तक प्रकाशन किया गया

1937 में पूरनचंद गुप्ता ने कानपुर के धन्नाकुट्टी में युगांतर नाम की प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत की थी। उद्देश्य था, आज़ादी की लड़ाई में लोगों को सलाहकार नियुक्त करना। 1939 में उन्होंने वीकली डेली अखबार की शुरुआत की।

अगस्त 1942 में ब्रिटिश सरकार ने अखबार के संपादक को गिरफ्तार कर लिया। सविनय अज्ञा आंदोलन में महात्मा गांधी के स्तंभ अखबार का प्रकाशन 3 महीने के लिए बंद कर दिया गया। तब सरोजिनी नायडू और विजय लक्ष्मी पंडित के लेख सामने वाले पेज पर छपते थे।

अमर उजाला: उत्तराखंड आंदोलन के दौरान सपा ने जलाई इसकी झलक

18 अप्रैल 1948 को डोरीलाल अग्रवाल और मुरारीलाल माहेश्वरी ने आगरा शहर से यह अखबार शुरू किया था। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर सिंह यादव की खबरें लाभ चाहती थीं, लेकिन अमर उजाला ने लगातार आंदोलन की खबरें दीं। इससे नाराज यादव ने अखबार के खिलाफ हंगामा का सार्वजनिक विज्ञापन कर दिया। अख़बार की मस्जिद जलाई जाने वाले फूल और विज्ञापन रोक दिए गए। आज का अखबार 6 राज्यों व 2 केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद है।

दैनिक भास्कर: आजाद भारत की प्रेमिका को पूरा करने वाला अखबार

1956 में आजाद भारत की ओर से ‘गुड मॉर्निंग इंडिया’ का प्रकाशन शुरू हुआ। 1957 में इन दोनों अखबारों का नाम ‘भास्कर समाचार’ रखा गया। फिर 1958 में अखबार का नाम ‘दैनिक भास्कर’ कर दिया गया।

द्वारका प्रसाद अग्रवाल के बाद उनके बेटे राम चंद्र अग्रवाल ने इस पर कब्जा कर लिया। वे कहते हैं पाठक अखबार के ही मालिक हैं। ‘केंद्र में पाठक’ के समान सिद्धांत पर अखबार प्रकाशित होता है।

पंजाब केसरी: जेल में लाला लाजपत राय से मिली थी अखबार की प्रेरणा

पंजाब केसरी के संस्थापक जगत नारायण सिर्फ 21 साल के थे, जब वे वकालत की पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। बाद में नारायण की मुलाकात लाला लाजपत राय से लाहौर जेल में हुई। 1929 में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित लोक सेवक मंडल ने पंजाब केसरी नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित करना शुरू किया। हालाँकि आधिकारिक तौर पर अख़बार की शुरुआत 1965 में हुई थी। स्थापना के 16 साल बाद लाला जगत नारायण के साक्ष्‍य की हत्‍या कर दी गई थी।

इनाडु : सुबह का अखबार शाम को दिखा, इसलिए इनाडु बनाया

चेरुकुरी रामोजी राव ने 1974 में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से प्राचीन भाषा का अखबार इनाडु शुरू किया। तब विशाखापट्टनम में कोई अखबार नहीं था। आंध्रज्योति अखबार विजय वेव से काइथ और डोज़ में विशाखापट्टनम का उद्घाटन था। लोग शाम को काम से लौटकर पेपर बुक कर रहे थे।

रामोजी राव ने इनाडु की शुरुआत की। 1975 में इनाडु रेजिडेंट और 1978 में वाइव्डे से भी शुरुआत हुई। अब यह प्रदेश का सबसे बड़ा अखबार है।

चर्चा स्रोत – सुरभि दाहिया की पुस्तक इंडियन मीडिया जायंट्स,

पद्म श्री विजय दत्त श्रीधर द्वारा संचालित सप्रे संग्रहालय, भोपाल



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