” जीवन के परिवर्तन के लिये केवल अच्छे विचार ही जरूरी नहीं सेवा और सहयोग भी आवश्यक है|” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की समाधि स्थल चंद्रगिरी में रविवारीय धर्म सभा में व्यक्त किये|
उन्होंने कहा कि आचार्य श्री ने देश दुनिया के सामने मात्र विचार ही नहीं दिये बल्कि उन विचारों को बारीकियों से समझा तथा समाज को सक्रिय कर उन विचारों के माध्यम से विभिन्न – विभिन्न आयाम भी स्थापित किये एवं “सम्यक् दर्शन” का सही पाठ पढ़ाया| उनके जीवन की करूणा हर उपेक्षित वर्ग के साथ थी तभी तो हथकर्घा के उपक्रम खड़े किये तथा भाग्योदय एवं पुण्योदय जैसे तीर्थों को खड़ाकर के मानव सेवा का मार्ग भी प्रशस्त किया|

सुसंस्कृत और शिक्षित नारी के लिये प्रतिभास्थलिओं के माध्यम से बेटीयों की शिक्षा तथा गौ शालाओं के माध्यम से समस्त प्राणिओं की रक्षा का भाव रख कर पूज्य गुरुदेव ने सक्रिय सम्यक् दर्शन की भूमिका को आप सभी के सामने रखा है। मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री कभी किसी के विरोध में खड़े नहीं हुये, कभी किसी ने उनका अथवा उनके विचारों का या किसी उपक्रम का विरोध भी कर दिया तो उसको भी वह मुस्करा के टाल गये|
उनका चिंतन इतना गहरा था कि विरोधी भी उनके सामने घुटने टेक देते थे अपनी मधुर मुस्कान के साथ सामने वाले को सहजता से स्वीकार करा देते थे यही कारण था कि जो लोग एकांतवादी विचारधारा के तथा असहज थे वह भी गुरुदेव के चरणों में आकर झुकते हुये देखे गये।
सागर में आचार्य श्री के पास विद्वानों की एक टोली आई और कहा कि आचार्य श्री कुछ मुनि विरोधी लोग मुनिओं के विषय में बहुत ऊटपटांग लिखते है और कहते है कि “पंचमकाल में मुनि नहीं होते” आपने कभी इनका विरोध नहीं किया? तो आचार्य श्री ने मधुर मुस्कान के साथ उनको बोले कि किसने कहा कि मैंने उनकी इस बात का विरोध नहीं किया? क्या कोई बात को लिखने या चिल्लाने से ही विरोध होता है? अरे हमने तो स्वंय मुनि बनकर और मुनि बनाकर यह सिद्ध कर दिया कि साक्षात देख लो कि पंचमकाल में मुनि होते है और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण दिया|
आचार्य श्री भले ही कोई बात को मुख से नहीं कहा करते थे उन्होंने अपनी चर्या से दिखा दिया “लो देख लो पंचमकाल में भी चतुर्थ काल की चर्या को पालने वाले मुनि होते है|” आचार्य श्री ने कभी नकारात्मक बातों को प्रोत्साहित नही किया बल्कि उसे सकारात्मकता के साथ अपनी चर्या के माध्यम से प्रस्तुत किया है इसीलिये पूज्य गुरूदेव उन लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो गये जो कभी विरोध करते थे।
मुनि श्री ने कहा कि आचार्य श्री ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किये है आप लोगों ने मात्र गुरवर के वैभव को ही देखा है लेकिन गुरुदेव के शुरूआती दौर को आजकल की नई पीढ़ी तो जानती भी नहीं| एक समय था जब समाज में एकांतिक विचारधारा का बोलबाला था | धर्म की व्याख्यायें उन पंडितों के हाथों में थी| उन्होंने जो व्याख्या कर दी वही व्याख्या समाज भी मान लेती थी उसका कारण मुनिओं की संख्या बहुत कम तथा युवाओं को रूझान नहीं था| मुनिओं को वृद्धावस्था के रुप में ही देखा जाता था लेकिन वह चारित्र में सुद्रण तथा तपस्वी हुआ करते थे| उनके नियम भी बहुत कठोर होते थे उन नियमों के कारण श्रद्धालुओं की संख्या तो बड़ी लेकिन युवाओं ने उनसे दूरी बनाकर रखी उनसे घुल मिल नही पाऐ वहीँ आचार्य श्री ने अपने जीवन में इस बात की भी पूर्ती की उन्होंने एकांत वादियों को अपनी चर्या के माध्यम से स्वीकार ही नहीं कराया बल्कि उन घरों में जिन घरों में मुनिओं के पास आने की तथा चौका लगाने की परंपरा ही नहीं थी उन घरों से तथा उन परिवारों से नई पीढ़ी को शिक्षित किया और उनको संस्कारित कर भगवान का अभिषेक एवं मुनिचर्या से परिचय कराया तथा मुनिपरंपरा से अनभिज्ञ युवावर्ग को आगे बढ़ाया और दीक्षायें प्रदान की| जब उस परिवार से ही युवा मुनि बन गये तो उन लोगों की मान्यता में भी परिवर्तन आया और उन्होंने भी मुनि मार्ग को स्वीकार किया। मुनि श्री ने कहा कि “पर की पीड़ा ही करुणा की परिक्षा लेती है” यदि कोई परेशानी में है, असहाय है और अपनी पीड़ा को बता रहा है और हम यह कहें कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर सकता तो हमारे आचार्य कुंदकुंद स्वामी कहते है कि यह परिभाषा किसी व्यक्ति के नीरस भाव को प्रकट करती है| इससे सम्यक् दर्शन सक्रिय नहीं होगा| सम्यक् दर्शन को सक्रिय रखना चाहते हो तो सेवा के सभी प्रकल्प जरुरी है। आचार्य श्री ने 1975 में फिरोजाबाद का चातुर्मास किया वहाँ के श्रावक श्रेष्ठी सेठ छदामी लाल जी एकांत की मान्यता रखते थे लेकिन आचार्य श्री ने उन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्ही के मंदिर में चातुर्मास किया और अपनी चर्या से उनको प्रभावित किया जिससे वह स्वयं आगे बड़े और उन्होंने अपना समर्पण दिखाया| आचार्य श्री ने अपनी चर्या के माध्यम से संस्कार और आचरण के माध्यम से जैन समाज के युवाओं को आकर्षित किया एवं मुनि मार्ग की एक लम्वी श्रंखला खड़ी कर दी जो कि हजारों वर्ष तक चलती रहेगी। इस अवसर पर निर्यापक मुनि श्री वीरसागर महाराज ने भी सक्रिय सम्यक् दर्शन संदर्भित विचारों को प्रस्तुत किया| इस अवसर पर मुनि श्री पवित्रसागर जी, मुनि श्री आगमसागर जी, मुनि श्री पुनीतसागर जी, आर्यिकारत्न गुरुमति-माताजी, आर्यिकारत्न दृणमति माताजी, आर्यिकारत्न आदर्शमति माताजी सहित समस्त ऐलक, क्षुल्लक तथा बाल ब्र. एवं दीदियाँ उपस्थित थी राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख निशांत जैन ने बताया रविवार होंने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे कार्यक्रम का संचालन चंद्रकांत जैन ने किया। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं निशांत जैन ने बताया चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र पर संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज के प्रथम समाधि दिवस तिथी माघ सुदी९ दिनांक 6 फरवरी 2025 को गृह मंत्री भारत सरकार के माननीय अमित शाह जी द्वारा जो स्मारक सिक्का जो कि चांदी तथा अन्य धातुओं के साथ बना हुआ है उसका विमोचन किया गया था। जिसकी बुकिंग चालू हो गई है। जो भी ये सिक्का प्राप्त करना चाहते है कृपया विद्यायतन के विनोद बडजात्या (अध्यक्ष)- 9425252525, मनीष जैन- (महामंत्री) 9425531401 से संपर्क कर प्राप्त कर सकते है | आचार्य गुरुदेव की प्रभावना के दृष्टिकोण से संपूर्ण भारत में जहाँ – जहाँ स्मृति स्वरुप भारत सरकार के ये सिक्के चाहिये है वह सामुहिक रुप से बैठक आयोजित कर जितने भी सिक्के चाहिये उतनी राशी को बैंक खाते में जमा कर उसका स्क्रीन शॉट भेज देंगे तो आपको डाक द्वारा भेज दिया जाऐगा एक या दो सिक्का लेंने वाले का डाकखर्च अलग लगेगा या डिलेवरी डोंगरगढ़ से लेना होगी। इस अवसर पर चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष किशोर जैन, कोषाध्यक्ष सुभाष चंद जैन, महामंत्री निर्मल जैन, मंत्री चंद्रकांत जैन,रीतेश जैन डब्बू,अनिल जैन, जय कुमार जैन, यतिष जैन, सुरेश जैन, अंकित जैन, राजकुमार मोदी , चंद्रगिरी समाधि स्थल विद्यायतन के अध्यक्ष विनोद बड़जात्या रायपुर, महामंत्री मनीष जैन , निखिल जैन, सोपान जैन, अमित जैन, नरेश जैन जुग्गु भैया, सप्रेम जैन, सहित समस्त पदाधिकारियों उपस्थित थे। उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है|