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- अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर एजुकेट गर्ल्स एनजीओ की संस्थापक सफीना हुसैन का साक्षात्कार
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‘एक प्रशिक्षण पर मैं मसूरी के पास एक गांव में छोटा स्वास्थ्य केंद्र स्थापित कर रही थी। तब मेरे पिता से मिलने आये। उस गांव की महिलाओं ने पूछा कि उनके बच्चे कौन हैं। उन्होंने उत्तर दिया- ये मेरी इकलौती संत है! उन महिलाओं के चेहरे उतरे, मानो बेटी हो गई कोई त्रासदी।
उन्होंने मेरे पिता से कहा कि वे अभी छोटे हैं और उनके बेटे-बेटियां ऐसा करने की कोशिश कर रही हैं। यह बात मेरे मन में गहराई से बैठ गयी। मुझे ये इशारा करने की कोशिश करने में लगी कि उस इलाके में बेटियों को काम की चीजें समझ में आती हैं, उन्हें बोझ और पढ़ाई के बारे में समझना नहीं पड़ता।’
आज इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल पार्टी के मेहमानों के लिए डेली भास्कर ने ‘एजुकेट गर्ल्स’ एनजीओ की संस्थापक सफीना हुसैन से बात की। पिछले महीने ‘एजुकेट गर्ल्स’ को 2025 के रेमन मैग्से से सम्मानित किया गया था। सफ़ीना भारत में पढ़ाई से दूर होलेड हिस्सों को वापस कूल से जोड़ने का काम करती है। वो अब तक 20 लाख के हिस्से को अंतिम रूप से जोड़ चुके हैं।

एजुकेट गर्ल कोचिंग की फाउंडर सफीना हुसैन (बांए) वॉलेंटियर्स गर्ल कोचिंग के साथ।
अपनी जर्नी के बारे में बात करते हुए सफीना बताती हैं- मेरी पढ़ाई में 3 साल का अंतराल आया था और मेरी पढ़ाई से बिल्कुल दूरी हो गई थी। लेकिन मुझे दूसरा अवसर मिला। मैंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई की, और दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में बिटकॉइन के साथ काम किया।
तभी मुझे पता चला कि मेरी शिक्षा ने मुझे बताया, एक आवाज दी। गहराई से ये बात समझ आई कि भारत में लाखों लड़कियों को ये मौका कभी नहीं मिलेगा। इसलिए, 2007 में मैंने एजुकेट गर्ल्स (एजुकेट गर्ल्स) की शुरुआत की। इसका उद्देश्य यही है कि जैसे मुझे एक मौका मिले, वैसे ही हर लड़की को मौका मिले।
सबसे कठिन क्षेत्र से काम शुरू हुआ
मेरा पहला कदम मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) से संपर्क करना था, जो स्कूल शिक्षा और संगीत विभाग का अवलोकन करता है। एमएचआरडी ने मेरे 26 ऐसे आडंबर की एक लिटरॉमा शेयर की, जहां शिक्षा में लैंगिक अनूठे ‘गंभीर’ स्तर पर थे। इनमें से 9 जिले राजस्थान में थे। यह साफ था कि मेरे लिए काम से काम शुरू हो गया था।
इस जानकारी के साथ मैं राजस्थान सरकार को ये कहते हुए सुना रहा हूं कि वे हमें अपना सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले हैं। इस तरह एजुकेट गर्ल्स की स्थापना की गई।
हमने समस्या पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू किया। परिवार अपनी बेटी को स्कूल क्यों नहीं भेज रहे हैं? लड़कियों की शिक्षा लेकर जो सामाजिक कलंक बना, वह एक बहुत बड़ी बाधा थी। हमने परिवार से नियुक्ति और अपनी बातें करना शुरू कर दिया। काम मुश्किल था, लेकिन हमने प्रयास जारी रखा। धीरे-धीरे डिलीवर करने वाले छात्रों के छात्र-छात्राओं के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार ने ये देखा. दो साल के अंत में, हमें 500 पुरावशेषों पर काम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
हमारी शुरुआत 18 साल पहले, राजस्थान के पाली जिले से लगभग 50 साल पहले हुई थी। टैब से, समुदाय और सरकारी जानकारी से हमने 20 लाख से अधिक प्रेमी लड़कियों को स्कूल में मदद के लिए वापस बुलाया है। साथ ही, 30,000 में 24 लाख बच्चों की सीखने की क्षमता में सुधार किया गया है।

सफीना हुसैन ने 1998 से 2004 तक सैन फ्रांसिस्को में फैमिली हेल्थ इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक के रूप में काम किया। 2007 में वे भारत आ गए।
टेक्नोलॉजी और एआई की मदद से हॉट क्लिनिक पहचाने जाते हैं
डेटा एनालिसिस और एआई का उपयोग करके संस्था की संख्या की पहचान की जाती है जहां स्कूल से बाहर रहने वाली लड़कियों की सबसे ज्यादा पहचान होती है। इनमें ‘हॉटस्पॉट’ कहा जाता है।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के हजारों गांव हॉट हॉस्पिटल हैं। हमारा लक्ष्य है अगले 10 वर्षों में भारत के 12 राज्यों में 1 करोड़ डोमेन से लेकर यूरोप तक।
अगले 10 साल में हम एक ऐसी दुनिया देखना चाहते हैं जहां हर लड़की माध्यमिक शिक्षा पूरी करे। जहां शिक्षा सामान्य हो, अपवाद नहीं, और लैंगिक विकलांग यानी लड़का-लड़की में भेदभाव केवल इतिहास की बात बन कर रह जाए।

एजुकेट गर्ल्स अब तक 30 हजार से ज्यादा में काम कर चुकी है। 55,000 से अधिक स्कूली वालंटियर्स (टीम गर्ल्स) की मदद से 20 लाख से अधिक नामांकित बच्चों को स्कूल के स्नातकों और 24 लाख से अधिक बच्चों की बेहतर पढ़ाई में मदद दी गई है।
दुनिया में 12 करोड़ लड़कियाँ कूल से दूर
आज भी दुनिया भर में लगभग 12.2 करोड़ लड़कियाँ स्कूल से बाहर हैं। हमने देखा है कि कैसे लड़कियाँ न केवल आदर्श गुणों में वापस आ गई हैं, बल्कि बहुत अच्छे प्रदर्शन भी कर रही हैं। कुछ ने तो ओपन स्कूल को राज्य में टॉप तक पहुंचाया है।
लड़कियों को शिक्षित करने में हमने बार-बार देखा है कि जब हम एक लड़की को फिल्म स्कूल में ले जाते हैं और उसे रहने और सीखने के लिए मदद देते हैं, तो हम सिर्फ उसे नहीं, बल्कि उसके पूरे समुदाय के भविष्य को प्रभावित करते हैं।
पिछले दो दशकों में भारत सरकार ने देश में शिक्षा को लेकर बड़े कदम उठाए हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे ऐतिहासिक पहल के अब स्कूल देश के सबसे दुर्गम तक पहुँचे हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और हाल की उल्लास जैसी नारा में लड़कियों को पढ़ने के बेहतर तरीके दिए गए हैं। फिर भी ये धारणा है कि प्राइवेट स्कूलों की पढ़ाई, सरकारी स्कूलों से बेहतर है, ख़त्म होनी चाहिए। सरकारी दस्तावेजों की पढ़ाई का प्रमाण पत्र भी बेहतर करना जरूरी है ताकि लोगों के दस्तावेज अच्छे बन सकें।
साथ ही, हमें ओपन स्कॉल की नई कल्पना भी करनी होगी। इन्हें टेक्नोलॉजी रेडी, आसान और सस्ता बनाना होगा। ओपन क्वालीफिकल उन इंस्टालेशनों को मौका दिया जाता है, जो स्कूल छोड़ चुके हैं या कभी स्कूल गए ही नहीं। इन्हें सीखने का दूसरा मौका देना बहुत अहम है।
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