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- डीवाई चंद्रचूड़ | आपराधिक मामलों की सुनवाई में सरकारी अभियोजकों की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली14 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों के लिए आदर्श टेप रिकॉर्डर की तरह काम नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें इस मामले में सहभागी भूमिका निभानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने इस बात पर अफसोस जताते हुए कहा कि किसी आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील विरोधी गवाहों से व्यावहारिक रूप से कोई प्रभावशाली और असंगत बहस नहीं की जाती।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 3 मई को मामले में सुनाते वक्त जो फैसला सुनाया, उसमें यह भी कहा गया कि एक जज को न्याय की सहायता के लिए कार्रवाई की निगरानी करनी होती है, भले ही प्रोसिक्यूशन (अभियोजक) कुछ मायनों में विश्वास या कमजोरी हो। अदालत को कार्रवाई को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना चाहिए, ताकि सच्चाई तक पहुंचा जा सके।
न्यायालय सर्वोच्च बोला- न्यायालय का कर्तव्य कि वे सच तक पहुंचें
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारडीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच उस मामले में सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1995 में एक व्यक्ति ने पत्नी की हत्या कर दी थी और उसके अन्य सहयोगी को सजा सुनाई गई थी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि पब्लिक प्रोसिक्यूशन सर्विस और ज्यूडिशरी के बीच बेहतर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के नतीजे हैं। शीर्ष अदालत ने बार-बार कहा है कि सार्वजनिक अभियोजक जैसे पोस्टर पर राजनीति का घालमेल जैसे मामलों में नहीं होना चाहिए।
बेंच ने यह भी कहा कि जजों को ट्रायल में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए। साथ ही गवाहों से केसों के लिए आवश्यक सामग्री प्राप्त करें, जो सही निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए आवश्यक हो।
जनता का मानना है कि अभियोजन पक्ष के गवाह बार-बार मुकर जाते हैं-सर्वोच्च न्यायालय
बेंच के मुताबिक, सरकारी वकील इसके खिलाफ हैं, जो अभियोजन पक्ष के लिए जिम्मेदार हैं और अदालत के वकील के खिलाफ अपील कर सकते हैं, वे केस की सुनवाई में जजों के निष्पक्ष समकक्षों में से एक हैं। जनता के मन में यह भी खतरा है कि आपराधिक मुकदमा न तो स्वतंत्र है और न ही कोई कर्मचारी है, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सार्वजनिक अभियोजक इस तरह से मुकदमा लड़ रहा है, जहां अक्सर अभियोजन पक्ष के गवाह मुकर जाते हैं।
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भारत के मुख्य न्यायाधीश दिवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जब वे पांचवीं कक्षा में थे, तो उन्हें एक छोटी सी गलती के लिए बल्ले से हाथ पर मार दिया गया था। शर्म के मारे 10 दिन बाद तक वे अपने माता-पिता को ये बात नहीं बता पाए। उन्हें अपना घायल हाथ माता-पिता से छिपाना पड़ा था। सीजेआई ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय की ओर से आयोजित नेशनल सिम्पियम ऑन जुवेनाइल जस्टिस में कहीं और आयोजित कीं। पूरी खबर पढ़ें…