नई दिल्ली17 मिनट पहले
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हाईकोर्ट ने शुक्रवार (2 मई) को केंद्र और दिल्ली सरकार के लिए आवासीय व्यवस्था के लिए एक याचिका पर सुनवाई जारी की है।
जस्टिस जस्टिस और जस्टिस मनमीत पतित सिंह अरोड़ा की बेंच ने मामले को लेकर भारत सरकार, कानून और न्याय मंत्रालय, दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और रेकी जनरल से जवाब मांगा है।
केस की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी।
दस्तावेज़ में दस्तावेज़- कर्मचारियों के पास सरकारी घर नहीं
ज्यूडिशियल सर्विस एसोसिएशन दिल्ली द्वारा बनाए गए दस्तावेजों में अदालत को बताया गया है कि दिल्ली में न्यायिक अधिकारियों की कुल संख्या 823 है, लेकिन अभी भी न्यायिक अधिकारियों के लिए केवल 347 घर ही हैं।
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि दिल्ली में सरकारी घर वालों से मिलने के लिए सरकारी अधिकारियों की स्थिति बेहद खराब है। यह समस्या पुरानी है और अब समय आ गया है कि इस मांग को पूरा किया जाए।
कंपनी ने 1958 की 14वीं विधि आयोग की रिपोर्ट में सरकारी आवास की कमी और अधिकारियों को किराए पर रहने की मजबूरी के बारे में बताया था।
आवेदन पत्र में आगे कहा गया है कि आज भी कोई बदलाव नहीं है। अधिकारियों को अच्छे घर के लिए तनाव और दबाव की स्थिति से अवगत कराएं।
किराए के घर के लिए मीटिंग वाला मार्केट रेट से काफी कम
किराए के आवास के लिए अधिकारियों को 27% का भुगतान किया जाता है, जो स्थिर बाजार दर से काफी कम है। सोसायटी ने कहा कि जो अधिकारी अपने परिवार के साथ रहते हैं, वे उनके घर जाते हैं और बहुत परेशान रहते हैं। कई अधिकारी, और ग़ाज़ियाबाद जैसे दूर के देशों में रहने के लिए मजबूर हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्रीय और राज्य सेवा के अधिकारियों के आवास की संख्या कई गुना अधिक है। ऐसे में जब तक जरूरी आवास की व्यवस्था नहीं की जाती है, तब तक राजधानी अधिकारियों को सेंट्रल और स्टेट सर्विस के आवासों में रहने की व्यवस्था दी जाएगी।
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