नई दिल्ली20 मिनट पहले
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
सीजेआई ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय की ओर से आयोजित नेशनल सिम्पियम ऑन जुवेनाइल जस्टिस में कही।
भारत के मुख्य न्यायाधीश दिवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जब वे पांचवीं कक्षा में थे, तो उन्हें एक छोटी सी गलती के लिए बल्ले से हाथ पर मार दिया गया था। शर्म के मारे 10 दिन बाद तक वे अपने माता-पिता को ये बात नहीं बता पाए। उन्हें अपना घायल हाथ माता-पिता से छिपाना पड़ा था।
सीजेआई ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय की ओर से आयोजित नेशनल सिम्पियम ऑन जुवेनाइल जस्टिस में कही। अपने बचपन का किस्सा शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि मैं उस दिन को कभी नहीं भूल पाऊंगा। आप बच्चों के साथ कैसी विचारधारा रखते हैं, उनका जीवन पर असर उनके दिमाग पर रहता है।

काठमांडू में बाल न्यायशास्त्र एसोसिएटेड नेशनल आर्टिस्ट्स में शामिल सीजेआई चंद्रचूड़।
सीजेआई बोले- इस घटना ने मेरे दिल को प्रभावित किया है
CJI ने बताया कि मैं कोई अपराधी अपराधी नहीं था, जब मुझसे कहा गया था। मैं दीक्षांत समारोह में गया था और उस दिन मैं कक्षा में सही आकार की सुई लेकर नहीं गया था। मुझे याद है कि मैंने अपने टीचर से कहा था कि कमर पर मारने की बजाय हाथ पर प्रहार करो। लेकिन, उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी.
मार के हमले के बाद शर्म के मारे 10 दिन बाद तक मैं अपने माता-पिता को इस बारे में नहीं बता पाया था। अपना मुझे घायल हाथ से छिपाना डाला था। मेरे हाथ का घाव तो भर गया, परन्तु मेरे मन और आत्मा का घाव सदैव के लिए फूट गया। आज भी जब मैं अपना काम करता हूं तो मुझे ये बात याद आती है। ऐसी घटनाओं का बच्चों के मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
सीजेआई ने कहा- इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के लिए प्रति-देयता जरूरी
सीजेआई ने कहा कि जूनियर जस्टिस पर चर्चा करते हुए हमें बच्चों और बच्चों के साथियों पर ध्यान देना जरूरी है। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारा जस्टिस सिस्टम बच्चों के लिए अच्छा रहेगा। उन्हें सुराजने और समाज में वापस शामिल होने का मौका दे। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि हम इस समाज के अलग-अलग स्वभाव को स्वीकारें और यह भी स्वीकार करें कि इस समाज के अलग-अलग आयामों से कैसे जुड़ें।