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नवी मुंबई के चांबियाँ सिग्नल और दोस्ती के बीच शिक्षा क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत हुई। नेरुल के सेक्टर 4 इलाके में सिटी का पहला सिग्नल स्कूल ‘म्यूनिसिपल स्कूल नंबर 102’ शुरू हो गया है। माथे पर निशान, फूल आदि चढ़ाने वाले बच्चों को मासिक धर्म शिक्षा से जोड़ने के लिए इस स्कूल की शुरुआत की गई है।
यह नवी मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन यानी एनएमएमसी और सशक्त भारत व्यासपीठ की साझा पहल है। इससे पहले इसी तरह की एक शुरुआती पत्थर के हाथ नाका आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नीचे से शुरुआत की गई थी जो सफल साबित हुई थी।

‘सिर्फ एबीसी नहीं, जिंदगी का पाठ भी पढ़ेंगे’
समर्थ भारत व्यास पीठ के सीईओ बी रावत ने कहा, ‘इस स्कूल में सिर्फ एबीसी है और 123 डिग्री नहीं है। इससे इन बच्चों को सपने देखने का एक मौका भी मिलेगा ताकि वो अपनी सड़क की कठिन जिंदगी से बाहर और आकर्षक बन सकें।’
स्कूल आधिकारिक तौर पर जून 2025 में शुरू हुआ था। वर्तमान में चल रहे स्कूल का एकेडमिक वर्ष भी इसी दिन शुरू हुआ। वर्तमान स्कूल में 45 बच्चे हैं जिनमें 25 लड़कियाँ और 20 लड़के हैं। इनमें से 27 प्री-प्राइमरी, 10 पहली से चौथी कक्षा और 7-8 बच्चे 5वीं और 6वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं।
स्कूल में बच्चों के पहले स्कूल की टीम ने बच्चों के माता-पिता के साथ आदर्श सत्र का आयोजन किया क्योंकि शुरुआत में बहुत से माता-पिता बच्चों को स्कूल के अनुशासन को लेकर तैयार नहीं थे।
स्कूल से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘ये माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई के बारे में कभी नहीं सोचते थे, उन्हें मनाना पड़ा। उनके लिए यह देखना बहुत जरूरी है कि शिक्षा बेहतर जीवन की सीढ़ी है।’
बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए स्कूल बस भेजें
स्कूल में एक स्कूल बस भी तय की गई है जो बच्चे स्कूल आते हैं और वापस घर लौटने का काम करते हैं। इसी कारण स्कूल की अटेंडेंस 80% है।
स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे गरीब परिवार के साथ घर में रहने आते हैं। कई बच्चे बिना नहाए स्कूल आते हैं। इसलिए स्कूल में ऐसी सुविधा और व्यवस्था की गई है कि स्कूल के देखभाल करने वाले बच्चों को साफा-सुथरा क्लास की तैयारी में मदद मिल सके।
सुबह की दिनचर्या के बाद बच्चों की कक्षा स्कूल में ही शुरू होने से पहले ही शुरू हो जाती है। स्कूल के करिकुलम में किताबी शिक्षा के अलावा पर्सनैलिटी डियोडल, सोशल टेलीकॉम्स को भी शामिल किया गया है ताकि चाइल्ड सोसायटी में पूरे दोस्त के साथ थ्रो-मिल रेस्टॉरेंट शामिल हो सकें।
प्रोजेक्ट से जुड़े एक टीचर ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि बच्चा सिर्फ पढ़ाई न करे बल्कि उन्हें दुनिया के अंदर का सामना करने का मौका भी मिले।’
स्कूल में वीकली साइकोलॉजिकल कॉस्टिनेशन का सत्र
बच्चों को हर सप्ताह साइकोलॉजिकल ऑर्थोसिस के साथ भी एक सत्र दिया जाता है। बी रावत ने कहा, ‘यहां पढ़ने वाले ढेरों साधक ने अपनी जिंदगी में कुछ न कुछ ट्रॉमा देखा है। उनका ‘प्रामाणिक गणित और लैंग्वेज देखना’ बहुत जरूरी है।’
बच्चों के लिए अब यह स्कूल केवल पढ़ाई करने की जगह नहीं बल्कि एक ऐसी जगह बन गई है जहां वे सुरक्षित महसूस करते हैं और उन्हें बड़े पैमाने पर सपने देखने के लिए उत्सुक किया जाता है। स्कूल में पढ़ने वाली 10 साल की रिया कहती हैं, ‘मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है। मैं यहां नई चीजें सीखता हूं और जब कुछ समझ नहीं आता तो टीचर्स मेरी मदद करता हूं। मैं भी बड़ा अभिनेत्रिय छात्र चाहता हूं।’
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