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Bhaskar Opinion | Amethi Raebareli Lok Sabha Election; Rahul Gandhi Priyanka Gandhi | Congress | भास्कर ओपिनियन: अमेठी और रायबरेली की चर्चा के बीच मतदान का तीसरा चरण

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  • भास्कर राय | अमेठी-रायबरेली लोकसभा चुनाव; राहुल गांधी प्रियंका गांधी | कांग्रेस

10 मिनट पहले

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लोकतंत्र के यज्ञ की आधी से ज्यादा आहुति पूरी होने वाली है, 7 मई को। पहले चरण में 102 और दूसरे चरण में 88 पर बढ़त हासिल हुई है। तीसरे चरण में सात मई को 94 क्वार्टर पर मतदान होने वाला है। इसके बाद 543 में से अंत से अधिक यीज़ 284 पर पोज़िशन पूर्ण हो जाएगा।

बहुत हद तक नतीजों के बारे में भी पुख़्ता रूप ले लिया जाएगा। कम वोट का मतलब क्या होता है? इससे किसे फ़ायदा और किसे नुक्सान? ज़ोरों पर चर्चाएँ। नेताओं के भाषण, आरोप-प्रत्यारोपों में, और अधिक तल्खी लगेंगे। कुछ हद तक प्रभावकारी भी किया जा सकता है। उनकी आक्रामकता यकायक गुस्से में बदल जाएगी।

इस बीच पिछले साल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नाम पर सहमति थी, लेकिन सोनिया और सोनिया ने एक बार फिर से चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। दूर ठिकक जाओ। जाने, कांग्रेस प्रियंका को चुनाव लड़ने से बचाने की फिराक में क्यों? यह हो सकता है कि यह प्रियंका का अपना निर्णय हो, लेकिन यह ठीक है तो नहीं कहा जा सकता।

सत्य, सत्य पक्ष के समर्थकों का सही और समर्थक जवाब फिलहाल कांग्रेस की ओर से आलोचना ही दे रही हैं। लोग उनकी बातें भी सुन रहे हैं। उनमें नेतृत्व क्षमता हो सकती है! कहीं भी, कांग्रेस नेतृत्व उन्हें पद से डर तो नहीं रही है? सबसे अच्छी बात यह है कि राहुल गांधी से चुनावी अखाड़े में उतारू हैं। लेकिन यहां तो भूकंप परिदृश्य ही पड़ गया।

मठाधीशों के बजाय चुनावी मैदान में उतरे राहुल गांधी के फैसले के बाद बीजेपी उन्हें भगोड़ा दिखाने लगी तो अलग! बीजेपी ने तो यहां तक ​​कहा कि राहुल जी बार-बार बदलाव से कुछ नहीं होने वाला है। क्योंकि दिक्क़त में नहीं, आप में है! इस नए आरोप का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है। प्रियंका गाँधी आख़िर किस किस को उत्तर दें?

बाकी कांग्रेसी नेताओं को तो कोई जवाब नहीं दे रहा। इक्का- दुक्का कोई बोल भी रहा है तो, या तो उनका कोई सुन नहीं रहा है या सुन भी रहा है तो तवज्जो नहीं दे रहा है।

भाजपा उत्तर और मध्य भारत में जहां उनकी प्रमुख प्रतिमाएं पहले से हैं, वहां कुछ प्रतिमाएं कम होने की आशंका से परेशान हैं, वहीं कांग्रेस इन इक्का-दुक्का संकल्प को पूरा करने की उम्मीद से ही खुश हो रही है। किसी को इस तरह की डिफ़ॉल्ट स्थिति में देखना ठीक तो नहीं लगता, लेकिन समय और प्रतिबिंब का कोई क्या कर सकता है?

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