डोंगरगढ़:
श्री दिगंबर जैन महातीर्थ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़ में महासमाधि धारक परम पूज्य
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित एवं परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज
मुनि श्री भाव सागर जी महाराज एवं आर्यिका श्री आदर्शमति माताजी ,आर्यिका श्री संवरमति माताजी ,आर्यिका श्री विनीत मति माताजी , एवं ब्रह्मचारी मनोज भैया जी जबलपुर के निर्देशन में
18नवंबर 2025 को समाधिस्थ परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 55 वां आचार्य पद आरोहण स्मृति महोत्सव मनाया गया ,मांगलिक क्रियाये संपन्न हुई,

समाधिस्थ परम पूज्य
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरण चिह्न की प्रतिष्ठा हुई,
दुनिया का प्रथम आयोजन हुआ जिसमें
आचार्य श्री की विशेष 36 भाषाओं में पूजन, आचार्य छत्तीसी महाविधान,
*एक शाम गुरुवर के नाम*
*भजन संध्या एवं महाआरती* हुई,
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ मूल गुणधारी आचार्य परमेष्ठी का महाविधान प्रथम बार नए तरीके से संपन्न हुआ
36 विशेष माडने पर विधान हुआ,
36 प्रकार की विशेष स्वर्ण, रजत , रतन,की द्रव्य से पूजन हुई,
धान के कटोरे के36 प्रकार के चावल अर्पण किए गए,
36 फीट का विश्व का प्रथम माडना जिस पर भारत के प्रत्येक समाज के व्यक्ति ने 36श्रीफल अर्पण किए,
हथकरघा की पूजन की अलग-अलग रंगों में विशेष वेशभूषा थी,
शास्त्र अर्पण ,पाद प्रक्षालन. सांस्कृतिक कार्यक्रम, हुआ, पौधे रोपण किये गये, जरूरतमंदों को भोजन,औषधि,वस्त्रदान किए गए,
इस कार्यक्रम में जबलपुर, ललितपुर,सिवनी सहित भारत के कई नगरों से लोग शामिल हुए,

इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए
आर्यिका श्री आदर्शमति माताजी ने कहा कि
भारत में गुरु को अधिक महत्व दिया जाता है ,
आचार्य श्री के अनंत उपकारों को कोई भूल नहीं सकता , आचार्य श्री के चरण युगों युगों तक मार्गदर्शक रहेंगे , भारत देश अहिंसा का शंखनाथ करने वाला है ,
मुनि श्री भावसागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य श्री साधना 56000 वर्ष की थी ग्रंथों के अनुसार , 22लाख वर्षों में करोड़ों के संख्या में दिगम्बर जैन साधु हुए है , आचार्य श्री की 2600 से अधिक पूजन लिखी गई है जो वर्ल्ड रिकॉर्ड है , आचार्य कुंदकुंद स्वामी के बाद सबसे ज्यादा समय तक आचार्य पद पर आचार्य श्री रहे है ,
गुरु की महिमा को शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता,गुरु सीमातीत है, गुणों के भंडार है, ,आचार्यश्री ज्ञान सागर जी ने मुस्कुराते हुए आचार्य पद का त्याग किया था,गुरुदेव ने बड़े-बड़े महान कार्य किए हैं, वह कठिन ग्रंथ पढ़ते थे, वह बड़े-बड़े कवियों की टक्कर लेने वाले थे,गुरु की कृपा हुई थी, आचार्य पद उसी को दिया जाता है, जो अपने गुरु के गुणो को आत्मसात कर लेते है, गुरु जो कह रहे है स्वीकार कर लेना गुरु दक्षिणा है,पूज्य ज्ञान सागर जी ने कहा था कि जितने गुण विद्यासागर जी में है उतने मेरे अंदर भी नहीं है,इसलिए हमने उन्हें आचार्य पद देकर बड़ा बनाया है,आचार्य श्री विद्यासागर जी के ऐसे कई शिष्य है जिन्होंने एमएससी, एमटेक, डॉ.की डिग्री ,विदेश की सर्विस छोड़कर दीक्षा ली है, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा था कि अगर मैं सिंहासन पर नहीं बैठूंगा, तो क्या आचार्य नहीं कहलाउंगा,
विदेशी लोग ने आचार्य श्री की मूकमाटी पढ़ने के बाद मांसाहार,शराब का त्याग किया, आचार्य श्री शब्दों के जादूगर थे अनुशासन की जीवन्त मूर्ति है,आचार्य श्री के पास नैनागिर मे मैं प्रवचन सुनने नाग नागिन आते थे,और पंचकल्याणक में पानी की कमी हुई तो उनके आशीर्वाद से जल स्रोत मिला था जो पंचकल्याणक के बाद बंद हो गया था, उनके दर्शन करके देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल ,मुख्यमंत्री ,सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के जज ,विचारक, साहित्यकार, शिक्षाविद, कानूनविद ,उद्योगपति ,प्रमुख संत ,विश्वविद्यालय कुलपति आदि ने मार्गदर्शन प्राप्त किया था,
गुरु ही शिष्य के बुझे हुए दीप को प्रज्वलित कर सकते हैं,वह अंदर परमात्मा बनने की प्यास जगाते हैं, वह मोक्ष का ताला खोलना सिखाते हैं,गुरु कृपा से अनेक प्रकार के विद्या मंत्र सिद्ध हो जाते हैं ,वह आदर्श के देवता होते है,
गुरु निर्देशक जैसे होते हैं आचार्य श्री ने कई वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए थे,
