– 105 आर्यिका आदर्श मति माता जी
श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में आज संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं विद्या शिरोमणि 108 आचार्य श्री समय सागर महाराज जी के आशीर्वाद से एवं 105 आर्यिका रत्न आदर्श मति माता जी के ससंघ सानिध्य में एवं बाल ब्रह्मचारी नितिन भैया खुरई के मार्गदर्शन में मंदिर के शिखर पर चाबी लगायी गयी |
यह शिखर बनाने का सौभाग्य श्री श्रीमंत सेठ विनोद जैन बिलासपुर कोयला परिवार को प्राप्त हुआ और यह चाबी लगाने का सौभाग्य भी इन्ही परिवार को प्राप्त हुआ |
प्रातः भगवान का अभिषेक, शांति धारा, पूजन आरती हुई तत्पश्चात आचार्य श्री 108 विद्यासागर समाधी स्थली में आचार्य श्री के चरणों का प्रक्षाल किया गया एवं आचार्य श्री कि पूजन और आरती कि गयी |
दोपहर 12:30 बजे भगवान के श्री यंत्र को ऊपर मंदिर में विराजमान कर संगीतमय पूजन कि गयी एवं पाषाण कि चाबी कि शुद्धि कि गयी और उसमे 105 आर्यिका रत्न आदर्श मति माता जी द्वारा केशर से स्वस्तिक बनाया गया और उपस्थित सभी भक्तों ने उसपर पुष्प क्षेपण किया तत्पश्चात पाषाण कि चाबी को क्रेन से ऊपर शिखर पर स्थापित किया गया |
105 आर्यिका रत्न आदर्श मति माता जी ने कहा कि एक और एक मिलने से दो हो तो उसे गणित कहते हैं , एक और एक मिलने से ग्यारह हो तो उसे संगठन कहते हैं, एक और एक मिलने से एक हो जाये तो उसे प्रेम कहते हैं, एक और एक मिलने से विपरीत हो जाये तो उसे राजनीति कहते हैं, एक और एक मिलने से शुन्य हो जाये तो उसे परमात्मा कहते हैं |
संगठन से यदि संग हट जाये तो केवल ठन ही शेष रहता है और वहाँ केवल ठन – ठन ही होता है कार्य कुछ नहीं हो पाता है |
संगठन से यदि ठन हट जाये तो संग शेष बचता है जिसका मतलब है कि – यदि संग – संग कार्य किया जाये तो बड़े – बड़े कार्य भी टना – टन हो सकता है |
चंद्रगिरी आचार्य श्री का प्रकल्प है और यह उन्ही के आशीर्वाद से बन रही है इसे जल्द से जल्द पूरा करने के लिये सर्वोपरि कमेटी, चंद्रगिरी कमेटी और विद्यायतन कमेटी संगठित रूप से कार्य करे और आचार्य श्री के समाधी स्मारक का कार्य भी अति भव्यता के साथ जल्द से जल्द पूर्ण करें |
यहाँ के प्रत्येक पाषाण खंड को आचार्य श्री ने स्वयं देखा है और उनकी ऊर्जा से आज भी यह क्षेत्र अतिशयकारी है और यहाँ का कण – कण उनकी चरण रज से पवित्र और ऊर्जावान है |
जैसा 108 आचार्य समय सागर महाराज जी कहते हैं वैसा करें| इस क्षेत्र के निर्माण के लिये यदि आपके पास अरबो – खरबों है, करोड़ों है, लाखों हैं, हजारों हैं, सैकड़ों है या एक रूपए भी है तो उसका कुछ अंश अपनी – अपनी शक्ति एवं क्षमता के अनुसार यहाँ अवश्य दान दें जिससे आपके आने वाली पीढ़ी जब इस क्षेत्र पर दर्शन करने आएगी तो उन्हें अपने पूर्वजों पर गर्व होगा कि जिन्होंने इतना विशाल और ऐतिहासिक मंदिर और तीर्थ क्षेत्र बनवाया है जिससे युगों – युगों तक जैन धर्म कि प्रभावना और समीचीनता बने रहेगी |
आचार्य श्री व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व थे | वे इस धरती पर मनुष्य के रूप में भगवान थे | उन्होंने कभी अपने नाम कि प्रशस्ति नहीं रखी बल्कि प्रशस्त भाव रखने कि प्रेरणा दी | उक्त कार्य के लिए श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, उपाध्यक्ष श्री राजकुमार जैन, कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन,महामंत्री श्री निर्मल जैन, विनोद बडजात्या, सप्रेम जैन, चंद्रकांत जैन, पूनम जैन, निशांत जैन, निखिल जैन, सोपान जैन, दीपेश जैन, अमित जैन एवं समस्त ट्रस्टीगण ने हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें दी |
भारत के विभिन्न स्थानों से एवं राजनंदगांव, दुर्ग, भिलाई, रायपुर, बिलासपुर आदि जगह से आये भक्तों ने उपस्थित होकर धर्म लाभ लिया एवं कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी सहभागिता दी |
उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है |