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जल संकटग्रस्त ग्रामों में मिशन जलरक्षा अंतर्गत जल संरक्षण के प्रयासों का दिख रहा कारगर असर

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राजनांदगांव 02 मई 2025। जिला प्रशासन द्वारा जिले में लगातार घटते भू-जल स्तर को बढ़ाने तथा जनभागीदारी के माध्यम से धरती के इस अमूल्य संपदा को संरक्षित करने बहुआयामी प्रयास किये जा रहे है।

जिसमें सभी शासकीय विभागों के अलावा गैर शासकीय संगठन एवं जनप्रतिनिधि तथा कृषि एवं पंचायत विभाग के मैदानी अमलों द्वारा प्रभावी भूमिका निभाई जा रही है।

जिले में कृषकों द्वारा जल का बहुतायत उपयोग फसलों की सिंचाई के रूप में किया जाता है। जिसके लिए कृषकों द्वारा नलकूपों से सिंचाई का रास्ता अपनाया जा रहा है।

जिससे भू-जल में लगातार गिरावट आ रही है। साथ ही कृषकों का एक बड़ा वर्ग वर्षा पर आधारित खेती कर रहा है, जिले में लगातार बढ़ते जल संकट को दूर करने तथा फसलों में सिंचाई के साथ भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाने जिला पंचायत द्वारा कृषि विभाग के माध्यम से जल स्रोतों विहीन ग्रामों में नालों का चयन कर वर्षा के बहते जल को रोक कर सतही सिंचाई को प्रोत्साहित करने जल संरक्षण संरचनाओं जैसे चेकडेम एवं स्टॉप डेम का निर्माण कराया जा रहा है।


जल सरंक्षण के इन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2023-24 में मनरेगा अभिसरण अंतर्गत राशि 327 लाख की लागत के माध्यम से 15 ग्रामों में चेकडेम का निर्माण कराया गया। जिससे 710 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में सिंचाई रकबें में वृद्धि के साथ 562 कृषकों द्वारा न केवल खरीफ में धान बल्कि रबी फसलों के रूप में चना, गेंहू एवं मक्का की खेती किया जा रहा है।

इसी प्रकार वर्ष 2024-25 में मनरेगा अभिसरण अंतर्गत राशि 255 लाख रूपए लागत से 12 जल स्रोत विहिन ग्रामों का चिन्हाकन कर ग्रामीणों व कृषकों की मदद से ज्यादा जल भराव वाले क्षेत्रों में पक्का चेकडेम का निर्माण कराया गया है। जिससे 362 हेक्टेयर कृषि रकबे में सिंचाई क्षमता में वृद्धि के साथ 314 कृषकों द्वारा चना, गेहूं व सब्जी फसलों की खेती कर नालों में संरक्षित जल का उपयोग किया जा रहा है। जल संकटग्रस्त ग्रामों में चेकडेम, स्टॉपडेम निर्माण होने से इस वर्ष 14580 हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं, 3362 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का व 36678 हेक्टेयर क्षेत्र में चना फसल की खेती के साथ अन्य दलहन, तिलहन फसलों का रकबा भी बढ़ा है। ग्रामों में जल संरक्षण की कार्य योजना तैयार करने के लिए 3 चरण अपनाये गये, जिसमें पहला चरण बहते हुए जल की गति को धीमा करना, दूसरा चरण बहते पानी को रोकना तथा तीसरे चरण में रूके हुए पानी का भूमि के भीतर स्रावक के माध्यम से ग्राऊंड वाटर रिचार्ज करना जैसे प्रयासों को शामिल किया गया है।

जल संरक्षण संरचनाओं के निर्माण से वर्षा जल के बहाव की गति धीमी होकर संरचनाओं के कैचमेन क्षेत्र में पानी 2-3 माह तक रूके रहता है, जो सिंचाई के काम आता है। गांव के कृषकों द्वारा बताया गये है कि गांव में सिंचाई व्यवस्था उपलब्ध होने से इस वर्ष भी खेती रकबा बढऩे के साथ-साथ सब्जी की खेती व रबी फसलों के क्षेत्र में वृद्धि होगी। जल संरक्षण अंतर्गत और अन्य गांवों का चिन्हांकन कर कार्ययोजना तैयार किया जा रहा है।

Nemish Agrawal
Nemish Agrawalhttps://tv1indianews.in
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