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अपराधों को रोकने के लिये भावों का परिवर्तन आवश्यक है – निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज जी

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“भारतीय कानून व्यवस्था में अपराधों को रोकने के लिये डंड की व्यवस्था है लेकिन हमारे “शास्त्र” उन अपराधों को रोकने के लिये भावों का परिवर्तन आवश्यक मानते है|

” उपरोक्त उदगार संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव विद्यासागरजी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य निर्यापक मुनि समतासागर महाराज ने प्रातःकालीन धर्म सभा में व्यक्त किये” मुनि श्री ने कहा कि “बाहर की खोज तो आपने बहुत की लेकिन अपनी खोज आज तक नहीं कर पाये|

” उन्होंने “भारत एक खोज” के वैज्ञानिक आईनस्टीन की चर्चा करते हुये कहा कि जब उनसे पूछा गया कि सर आपकी कोई खोज ऐसी भी रही जिसे आप चाहकर भी पूर्ण न कर पाऐ हों? तो उस वैज्ञानिक ने जवाब दिया “जिसने सारी जिंदगी मुझसे खोज कराई उसको मै आज तक नहीं खोज पाया” उसने कहा कि उस खोज को करने के लिये मुझे एक बार भारत में ही जन्म लेना होगा क्योंकि वह खोज करने वाला भारत की माटी में तथा भारत के पानी में घुला मिला है|

मुनि श्री ने कहा कि “हिंसा- झूठ- चोरी- कुशील- और परिग्रह को जब संकल्प पूर्वक त्याग कर दिया जाता है तभी परिणामों में परिवर्तन आ सकता है|

यह पांच पाप तथा मिथ्या दर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या चारित्र” रुपी अज्ञानता से ही आते है|

जो चारों गति में परिभ्रमण करा रहे है| इस परिभ्रमण से बचना चाहते हो तो सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के साथ देशव्रतों को अंगीकार करो” तथा 12 भावनाओं का चिंतवन करोगे तो आप भी भगवान वन जाओगे।

उन्होंने कहा कि भवनों में बैठ कर कभी भगवान तो छोड़ो कभी आत्मध्यानी भी नहीं बन सकते| उन्होंने कहा कि “अब तक सुनी बहुत रामायण भगवान राम की आओ आज सुनो रामायण अपने आत्मराम की” प्रभु राम ने जब भवन को छोड़ा और वह वन को गये इसीलिये वह राम बन गये| जब तक आप संकल्प पूर्वक अपनी सत्ता को नहीं छोड़ेंगे तब तक आप जीवन में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्मक् चारित्र की प्राप्ती नहीं कर सकते| उन्होंने कहा कि कुलाचार का पालन, रात्री भोजन का त्याग, पानी छानकर पीना, नित्यप्रति देव दर्शन करना, शुद्ध वस्त्र पहन कर भगवान का अभिषेक तथा पूजन करना तथा आत्मा के गुणों का चिंतन,जिनवाणी का स्वाध्याय, अभक्ष्य तथा अखाद्य सामग्रीओं का त्याग तो धर्म की प्रायमरी स्टेज है। उन्होंने उपस्थित एवं चैनल के माध्यम से सभी श्रद्धालुओं से कहा कि आप लोग मधु- मांस का त्याग तो कर देते हो लेकिन फास्ट फूड के माध्यम से “नानवेज” आपकी रसोई में प्रवेश कर चुका है जो आपके धर्म को नष्ट कर रहा है इसलिये सभी को फास्ट फूड का त्याग तो आवश्यक रुप से करना ही करना चाहिये जिससे आपका सात्विक भोजन बना रहे। मुनि श्री पवित्रसागर महाराज ने भी अपना सम्वोधन दिया| इस अवसर पर ऐलक श्री निश्चयसागर, ऐलक श्री निजानंद सागर, क्षु. श्री संयम सागर मंचासीन थे। राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं प्रचार प्रमुख निशांत जैन ने बताया दोपहर सामायिक के उपरांत मुनिसंघ का मंगल विहार “दुर्ग” की ओर हुआ। विहार में संघस्थ ब्रहम्चारी अनूप भैया रिंकू भैया, सुवोध भैया भुसावल,शैलेश जैन दमोह सहित राजनांदगांव, दुर्ग भिलाई रायपुर जैन समाज के बंधु शामिल रहे।

Nemish Agrawal
Nemish Agrawalhttps://tv1indianews.in
Tv Journalist Media | Editor | Writer | Digital Creator | Travel Vlogger | Web-app Developer | IT Cell’s | Social Work | Public Relations Contact no: 8602764448

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