जिंदगी तस्वीर भी है और तकदीर भी है फर्क तो सिर्फ रंगों का है | मनचाहे रंगों से बनाओ तो तस्वीर बनती है और अनजाने रंगों से बनाऐं सो तकदीर कहलाती है|” जो गुरुदेव हम सभी की तकदीर बनाने बाले है वह कल तक तो हमें पार्थिव रुप से चलते फिरते नजर आते थे लेकिन आज वह तस्वीर बने बैठे है|” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समता सागर महाराज ने धर्म सभा कोम सम्वोधित करते हुये व्यक्त किये |”
मुनि श्री ने कहा कि आचार्य गुरुदेव ने अपने जीवन में बहुत उपलव्धि हांसिल की ही है | उनके द्वारा प्राणीमात्र को जो उपलव्धियां हांसिल हुई उनके पीछे मानव जाति तो क्या पेड़ – पौधे और पत्थर भी उनकी कृपा पाकर के धन्य हो गये| विहार करते करते जब एक गरीब की कुटिया में एक शिला पर बैठ गये तो वह शिला भी अनमोल हो गयी| मुनि श्री ने कहा कि आचार्य गुरूदेव ने क्षेत्रों का उद्धार तो किया ही किया साथ ही साथ दिशा विहीन तथा संस्कार विहीन समाज का भी उद्धार किया | लाखों युवा रूढीवादी परंपराओं के कारण मुनिराजों के आहार विहार तथा भगवान के अभिषेक एवं पूजा पाठ में कोई रूचि नहीं लेते थे| उम्र दराज होंने पर ही दीक्षा लेते थे लेकिन हमारे गुरूदेव ने युवाओं को वैरागी बनाया और वैरागियों को अच्छे तरह से शिक्षित किया परिणाम यह निकला कि शिक्षित युवाओं की एक बड़ी टीम आचार्य गुरुदेव के आकृषण से दीक्षित हुई और परिणाम आप सभी के सामने है। उन्होंने कुंडलपुर के बड़े बाबा को पुराने स्थान से नये स्थान पर विराजमान करने की घटना को प्रकाश में लाते हुये कहा कि जब युवा सरदार ने बड़ी – बड़ी मशीनों से सारे प्रयास कर लिये और वह थक हार कर गुरुदेव की शरण में आया गुरुदेव ने अपनी पिच्छिका उठाई और बड़े बाबा की ओर निहारा तो ऐसा लगा कि बड़े बाबा से छोटे बाबा कोई बात कर रहे है| उन्होंने क्रेन से उठाने वाले उस सरदार को बुलाया और उससे बातचीत की तथा कुछ त्याग कराके बड़े बाबा को उठाने को कहा जब बड़े बाबा को उठाया जा रहा था तो वह एक टक उस प्रतिमा को खड़े – खड़े पिच्छिका हाथ में लिये निहार रहे थे तब उस गम्भीर अवस्था में आँखों से आंसू भी आ रहे थे जब बड़े बाबा विराजमान हो गये तो
किसी ने पूंछ लिया गुरुदेव आप इतने गम्भीर क्यों दिख रहे थे? तो गुरवर ने जवाब दिया बस यूं ही सारा देश मुझे देख रहा था और मै बड़े बाबा को देख रहा था और उनसे पूंछ रहा था कि बड़े बाबा तुम मेरे साथ हो या नहीं? और बड़े बाबा ने विराजमान होकर यह साबित कर दिया कि मै तुम्हारे ही साथ हूं।
मुनि श्री ने कहा कि गुरुदेव की अदभुत संकल्प और साधना तथा उनका पुण्य और पुरुषार्थ ने गुरुदेव को जैन समुदाय का ही नही बल्कि सभी समुदायों का गुरु बना दिया और यही कारण है कि केंद्र से लेकर के देश दुनिया का कोई भी व्यक्तित्व गुरवर के चरणों में आने को लालायित रहा।
मुनि श्री ने तिलवारा जबलपुर का उल्लेख करते हुये कहा कि बाबा रामदेव थोड़ा समय निकाल कर दर्शन करने आऐ थे लेकिन घंटों आचार्य श्री के पास बैठकर ज्ञानध्यान की चर्चा करते रहे एवं श्रद्धापूर्वक रात्री का अन्न पान का त्याग कर दिया और कहा कि आप सभी ने अपने महावीर को शास्त्रों में पड़ा होगा लेकिन मै अभी अभी उनसे मिलकर के बाहर आ रहा हूं।
गुरुदेव के जीवन में अनुशासन भी था और करुणा भी थी वह कभी डराते नहीं थे लेकिन उनकी एक नजर ही डाट का काम करती थी मुनि श्री ने कोंनी जी की घटना का उल्लेख करते हुये कहा कि संघ की प्रारंभिक अवस्था में जब मेरी दीक्षा को दो ढाई वर्ष हुये थे रात्री में गुरुदेव को तेल लगा रहा था तो वहां लाईट तो थी नहीं अचानक कोई आया और तेल की शीशी लुड़क गई तो सकपकाहट हुई गुरूदेव ने देखा सुवह हुई आचार्य भक्ती के पश्चात गुरुदेव ने रात्री का प्रसंग छेड़ दिया और कहा कि मेरे चिंतन में एक बात उभरी कि शीशी और शिष्य में डाट लगाना जरूरी है। लेकिन डाट ऐसी लगाओ कि ज्यादा कसना न पड़े आचार्य श्री ने कभी भी रोका नहीं और कभी टोका नहीं लेकिन उनकी नजरों का ही इतना भय रहता था
कि कोई गल्ती न हो जाऐ।
इस अवसर पर निर्यापक श्रमण वीर सागर महाराज ने सम्वोधित करते हुये कहा किसी भी शिष्य से पूंछो तो वह अपने गुरु को दुनिया का सबसे महान व्यक्ति बताऐगा| मुनि श्री ने कहा कि आचार्य कुंद कुंद भगवान यदि मोक्षमार्ग को नहीं दिखाते तो आज हम अंधकार में भटक रहे होते आज जिनधर्म को पहचान दिलाने वाले,बड़े बाबा को पहचान दिलाने वाले आचार्य गुरूदेव विद्यासागर महाराज हुये। उनके चरण जिधर पड़ते थे वह स्थान पूज्य और पवित्र हो जाता था। राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी एवं क्षेत्रीय प्रचार प्रसार प्रमुख निशांत जैन निशु ने उपरोक्त जानकारी देते हुये बताया कि प्रतिदिन आचार्य श्री की समाधि स्थल पर तीर्थयात्रियों के आने का सिलसिला जारी है। क्षेत्र पर मुनि श्री पवित्रसागर जी,मुनि श्री आगमसागर जी,मुनि श्री पुनीतसागर जी,ऐलक श्री निश्चयसागर जी ऐलक श्री धैर्य सागर जी ऐलक श्री निजानंद सागर जी,स्वागत सागर जी सहित समस्त क्षुल्लक गण एवं आर्यिकारत्न गुरूमति माताजी,आर्यिकारत्न दृणमति माताजी, आर्यिकारत्न आदर्शमति माताजी संघ सहित विराजमान है। आज भगवानआज भगवान चंद्रप्रभु का केवल्यज्ञान कल्याणक है एवं भगवान सुपार्श्वनाथ का मोक्षकल्याणक की पूजा की गई एवं निर्वाण लाडू समर्पित किया गया।
कार्यक्रम के शुभारंभ में आचार्य श्री के चित्र पर दीप प्रज्वलन चंद्रगिरी समाधि स्थल विद्यायतन के अध्यक्ष विनोद बड़जात्या रायपुर, महामंत्री मनीष जैन , निखिल जैन, सोपान जैन, अमित जैन, नरेश जैन जुग्गु भैया, सप्रेम जैन,चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष किशोर जैन, सुभाष चंद जैन, निर्मल जैन,मंत्री चंद्रकांत जैन,रीतेश जैन डब्बू,अनिल जैन, जय कुमार जैन, यतिष जैन, राजकुमार मोदी सहित समस्त पदाधिकारियों ने किया।उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है|