“साधक का लक्ष्य अपनी साधना को आगे बड़ाते हुये समाधि को प्राप्त करना होता है,उपरोक्त उदगार श्रमण संस्कृति के उन्नायक लोकोत्तर महापुरुष आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की समाधि के एक वर्ष उपरांत आयोजित विनयांजलि सभा मेंनिर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने धर्म सभा में सम्वोधित करते हुये व्यक्त किये।
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मुनि श्री ने कहा कि सम्यक्त्व और समाधि दो ऐसे महत्वपूर्ण विंदु है,जिनसे भव्य आत्माऐं साधक बन करके अपने निर्वाण के लक्ष्य को प्राप्त करते है,जैन दर्शन का सार यही है,कि जीवन में सम्यक्त्व की प्राप्ती हो,और उपसंहार में उस भव्य आत्माका समाधि मरण हो” उन्होंने गुरुवर आचार्य श्री को याद करते हुये कहा कि वह अपने साधना के संपूर्ण कार्यकाल में यही अनुभव करते रहे,और हम सभी को भी यही प्रेरणा देते रहे कि अपने भावों में प्रति समय प्रतिक्रमण एवं समाधि का भाव बना रहे “बोधि:समाधि: परिणामशुद्धि:स्वात्मोपलब्धि: शिवसौख्य सिद्धि:” मुनि श्री ने कहा कि ऐसी प्रेरणा हमें अपने गुरुवर से हम सभी को मिली,और उन्होंने उसी लक्ष्य को प्राप्त करने का जो प्रवल पुरुषार्थ किया वह हम सभी के सामने एक आदर्श है।
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उन्होंने आचार्य श्री समयसागर जी महाराज को एक निधी के रुप में हम सभी को दिया है उनका आशीष हमेशा फलता रहे। मुनि श्री ने उदाहरण देते हुये कहा कि मंदिर कितना भी भव्य और विशाल क्यों न बन जाऐ उसमें बेदी और श्री जी भी विराजमान हो जाऐं लेकिन यदि शिखर पर कलशारोहण नहीं है तो वह मंदिर अधूरा माना जाता है,ऐसे ही अपने जीवनकाल में आप कितने भी ब्रत उपवास कर लो अंत यदि समाधि सल्लेखना के साथ संपन्न न हो तो वह जीवन अधूरा माना जाता है उन्होंने कहा कि आचार्य गुरुदेव शारिरिक प्रतिकूलता होते हुये भी उस लक्ष्य को पाने में पूर्ण जाग्रति पूर्ण चेतना के साथ पूर्ण ममत्व का त्याग और निस्प्रहतः के भावों से अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहे।
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मुनि श्री ने उपस्थित पांचों प्रतिभास्थलिओं की समस्त शिक्षिकाओं और संचालिकाओं कोआशीर्वाद देते हुये कहा कि हम सभी को गर्व है की गुरवर की छत्रछाया में सभी प्रतिभास्थलिओं की बहनें और उनका त्याग,परिश्रम और समर्पण से ही वह पल्लवित और पुष्पित हो रहे है उनको देखकर आज हमें बड़ा गर्व और गौरव होता है।इस अवसर मुनि श्री पवित्रसागर जी,निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीरसागर जी,मुनि श्रीआगमसागरजी, मुनि पुनीतसागरजी तथा वरिष्ठ आर्यिका गुरुमति माताजी जी, आर्यिकारत्न दृणमति जी, आर्यिकारत्न आदर्श मति जी, सहित संपूर्ण आर्यिका संघ के साथ ऐलक निश्चयसागर जी, ऐलक धैर्यसागर जी,ऐलक निजानंद सागर जी,ऐलक स्वागत सागर क्षु.संयम सागर जी महाराज संघस्थ क्षु. श्री मनन सागर,क्षु. श्री विचारसागर,
क्षु.श्रीमगनसागर,
क्षु.श्री विरलसागर मंचासीन थे।कार्यक्रम का संचालन ऐलक श्री धैर्यसागर जी महाराज ने किया इस अवसर पर चंद्रगिरी प्रतिभा स्थली की सोनल दीदी एवं मीनल दीदी ने अपने स्वरों के माध्यम से आचार्य श्री की भावनात्मक संगीतमय पूजन की एवं अपनी मृत्यू को मृत्यू महोत्सव मनाने की कला के साथ सभी त्यागी वृति परिवार के सदस्यों ने सामुहिक रुप से अर्घ समर्पित कराया। कार्यक्रम के शुभारंभ में आचार्य श्री के चित्र पर दीप प्रज्वलन चंद्रगिरी समाधि स्थल विद्यायतन के अध्यक्ष विनोद बड़जात्या रायपुर, महामंत्री मनीष जैन , nikhilr जैन, सोपान जैन, अमित जैन, नरेश जैन जुग्गु भैया, सप्रेम जैन,चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष किशोर जैन, सुभाष चंद जैन, निर्मल जैन,मंत्री चंद्रकांत जैन,रीतेश जैन डब्बू,अनिल जैन, जय kumarr जैन, यतिष जैन, राजकुमार मोदी सहित समस्त पदाधिकारियों ने किया।
इस अवसर पर पांचों प्रतिभास्थलियां जबलपुर, ललितपुर,इंदौर, रामटेक तथा डोंगरगढ़, से आई वृति शिक्षिकाओं ने अपने विचार प्रकट किये एवं जब वह अपने संस्मरण सुना रही थी तो वह काफी भाव विहल हो गई।
गुरुदेव अक्सर कभी श्रैय नहीं लिया हमेशा अपने गुरु को स्मरण करते थे।
वह हमेशा कहते थे “मेरे गुरु ने गुरु समय दिया लघु बनने हेतु” इस अवसर पर गुरू के उपकारों को याद करते हुये उनकी उत्कृष्ट संल्लेखना का विवरण रखा।
इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव को चल चित्र के माध्यम से उन दृश्यों को दिखाया इस अवसर पर डोंगरगढ़ के प्रशासनिक अधिकारियों का भी सम्मानित किया गया रायपुर,राजनांदगांव, दुर्ग, भिलाई नागपुर,विदिशा, आदिस्थानों से बड़ी संख्या में संपूर्ण भारत से गुरूदेव के भक्त उपस्थित थे। उक्त जानकारी निशांत जैन निशु द्वारा दी गयी है|