0.3 C
New York

जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं, -108 निर्यापक श्रमण श्री समतासागर महाराज जी-108 निर्यापक श्रमण श्री समतासागर महाराज जी

Published:

डोंगरगढ़ : “गुरु” की महिमा बरनी न जाऐ,गुरु नाम जपो मन बचन काय” “गुरु”भारतीय संस्कृति की खोज है, दुनिया के पास टीचर तो है लेकिन गुरू नहीं,गुरु तो ज्ञानी, पारखी, उदार हृदय,तथा गम्भीर एवं रहस्य उदघाटक होते है,वह साक्षात प्रभु की तस्वीर होते है” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने चंद्रगिरी तीर्थ पर प्रातःकालीन धर्म सभा में प्रभु और गुरु के महत्व को दर्शाते हुये व्यक्त किये” मुनि श्री ने कहा कि -“जिसका कोई गुरु नहीं उसका जीवन शुरु नहीं” जिंदगी की शुरुआत और जिंदगी की पहुंच गुरु के माध्यम से ही होती है

आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागरजी महामुनिराज में आचार्य परमेष्ठी के रुप में जितने गुण होंना चाहिये वह सभी गुण उनके अंदर विद्यमान थे वह श्रैष्ठ संघ नायक थे,अध्यन अध्यापन की दृष्टी से वह उपाध्याय परमेष्ठी तथा निरंतर आत्मसाधना के रुप आत्मोनुखी होकर श्रैष्ठ साधु की चर्या का पालन करते थे अर्थात पंचपरमेष्ठी के तीन गुण आचार्य उपाध्याय एवं साधू के गुण उनमें एक साथ समाहित होते थे, संघ उनके साथ था वह संघ के साथ कभी नहीं रहे, उन्होंने अपने आचार्यश्री ज्ञान सागर महाराज की प्रेरणा से त जिंदगी अपने कर्तव्य का पालन किया तथा जैसा उनके गुरु ने कहा था बैसा ही संघ को “गुरुकुल” का रुप प्रदान किया आज वह हम सभी के “कुलगुरु” के रुप में आने बाली कयी पीड़िओं में “कुलगुरु” के रूप में हम सभी के हृदय में विराजमान रहेंगे, उन्होंने चतुर्थकालीन गुरुकुल परंपरा तथा विचारधारा को आगे बडाया वर्तमान में वह प्रतिभास्थली,त्यागीवृतिआश्रम,श्राविकाश्रम,वृद्धावस्था में संल्लेखना समाधि हेतु सन्यास दीक्षा तथा उनकी झलक श्रमण एवं श्रमणिओं में झलकती है।

मुनि श्री ने गुरवर के जीवन का उल्लेख करते हुये कहा कि उनके जीवन मे शिष्यों के प्रति करूणा और  वातसल्य भाव रहा तो समय समय पर कठोरता भी रही वह अनुशासन प्रिय थे मर्यादाओं के साथ स्वंय रहते तथा  संघ को भी अनुशासन तथा मर्यादा में रखना पसंद करते थे मुनि श्री ने कुंडलपुर से विहार के पश्चात का एक प्रसंग सुनाते हुये कहा कि जब समस्त मुनिसंघ का कुंडलपुर से विहार हुआ तो गुरुदेव ने भी  स्वास्थ्य की प्रतीकूलता होते हुये भी अपना विहार किया और अस्वस्थता के कारण शास्त्रों में उल्लेखित डोली का भी उपयोग किया  उनकी अस्वस्थता का समाचार जब  हम लोगों को बांदकपुर में मिला और जानकारी मिली कि उनकी आहारचर्या आज टोलनाका पर होंनी है,तो हम सभी से रहा नहीं गया और हम सभी मुनिराजों ने तय किया जिसमें महासागर जी,निष्कंप सागर जी,वीरसागर जी विशाल सागर जी, प्रणम्य सागर जी आदि मुनि तथा ऐलक निश्चयसागर जी, सभी ने एक साथ जाने का मन तो बना लिया लेकिन अंदर ही अंदर डर भी लग रहा था कि गुरु आज्ञा का उलंघन करने का गुरु जी पास से निकल रहे है अनुमति तो मिलेगी नहीं लेकिन अस्वस्थता का समाचार सुन रहा भी नहीं जाता अतः सभी ने विना अनुमति के जाना ही श्रैष्ठ समझा और हम सभी मुनिराजों ने आहारचर्या कर पांच छै किलोमीटर दूर टोलनाका पर पहुंच गये ज्येष्ठ निर्यापक मुनि श्री योगसागर जी को संदेश भेज दिया था लेकिन अंदर ही अंदर सभी को डर भी था कि पहल कौन करेगा? सभी ने हमें ही आगे बड़ाया उस समय गुरूदेव दीवारों की ओर मुख करके लेटे थे, हम भी हिम्मत करके  गुरु चरणों में जाकर बैठ गये और धीरे से निवेदन किया कि आपकी अस्वस्थता का समाचार सुनकर के हम सभी का मन व्याकुल था इसलिये हम लोग विना संकेत के यंहा पर चले आये हे,हम जानते है यह हमारी गल्ती है लेकिन इतने पास से आप निकल रहे है तो हम सभी का मन नहीं माना और हमारे इतना कहने पर आचार्य श्री ने आंखें खोली और वह उठकर बैठ गये और हम सभी की ओर देखकर मुस्कुराते हुये आशीर्वाद दिया तथा राजवार्तिक ग्रंथ का उदाहरण देते हुये कहा कि सुनो ‘भक्ती” को एकांत वाची बताया है और वह सम्यक् दर्शन का अंग है बातावरण अनुकूल हुआ और गुरुदेव से चर्चा शुरु हुई धीरे धीरे हम लोगो ने माहोल बनाया और आगे विहार में गुरूदेव की डोली उठाने का सौभाग्य सभी मुनिराजों  ऐलक जी  तथा सभी ब्रहम्चारी को मिल गया और हम लोग 9 कि. मी.तक चले  आगे रात्री विश्राम हुआ हम सभी लोग भी रूक गये लेकिन आचार्य श्री की आज्ञा नहीं थी और उन्होंने सुवह सुवह हम लोगों की तरफ देखा तक नहीं हम लोगों ने भक्ती की और विना आनुमति के रात्री विश्राम किया है इसके लिये क्षमा मांगते हुये कहा कि हम लोग सभी आपकी आज्ञानुसार बापिस जा रहे है..गुरुदेव मुस्कराये और आशीर्वाद दिया जाओ जाओ अच्छे से जाना..
मुनि श्री ने कहा कि यह भी आचार्य श्री का गुण था वह अंदर से जितने मृदु थे तो ऊपर से उतने ही कठोर थे उनको यह लगा कि यदि अभी कठोरता नहीं दिखाई तो कंही हम लोग फिर से पीछे न लग जाऐं।अंत में यह कहते हुये मुनि श्री ने अपनी बाणी को विराम दिया “हृदय में हो प्रभु का आसन”  मन में हो गुरु का शासन तभी बनता है जीवन पावन” दयोदय महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया इस अवसर पर मुनि श्री आगम सागर ,मुनि श्री पुनीत सागर ऐलक श्री धैर्य सागर ऐलक श्री निश्चयसागर ऐलक श्री निजानंद सागर,सहित आर्यिकारत्न गुरुमति माताजी, दृणमति माता जी, आदर्शमतिमाताजी,चिंतन मतिमाताजी सभी माताजी संघ सहित तथा संघस्थ ब्रहम्चारी एवं बहनें उपस्थित थी। गुरुवर बात जरा गहरी है, गुरुवर बात जरा गहरी है, क्योंकि हम सबकी जिन्दगी आप में ही ठहरी है | अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, निर्मल जैन, सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, सप्रेम जैन, डोंगरगढ़ जैन समाज के अध्यक्ष श्री अनिल जैन, कोषाध्यक्ष श्री जय कुमार जैन, सचिव श्री यतीश जैन, सुरेश जैन, निशांत जैन, विद्यातन पदाधिकारी श्री निखिल जैन, दीपेश जैन, अमित जैन, सोपान जैन, जुग्गू जैन, यश जैन, प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री पप्पू भैया  सहित समस्त पदाधिकारी उपस्थित थे । विद्यातन के अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या ने बताया कि 1 फरवरी 2025 से 6 फरवरी 2025 तक होने वाले प्रथम समाधि स्मृति महोत्सव कि पूर्ण रूपरेखा बना ली गयी है जिसमे सभी साथियों को कार्यविभाजन कर आवास, यातायात, भोजन, सिक्यूरिटी आदि व्यवस्था सुनिश्चित कर दी गयी है एवं देश – विदेश के सभी लोगो से करबद्ध निवेदन किया है कि सभी उक्त कार्यक्रम में अपनी गरिमामयी उपस्तिथि दर्ज कर धर्म लाभ लेवे | उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है|

Nemish Agrawal
Nemish Agrawalhttps://tv1indianews.in
Tv Journalist Media | Editor | Writer | Digital Creator | Travel Vlogger | Web-app Developer | IT Cell’s | Social Work | Public Relations Contact no: 8602764448

Related articles

spot_img

Recent articles

spot_img