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Is Modi’s Russia visit a wrong step for India? | क्या मोदी की रूस यात्रा भारत का गलत कदम: दावा-अमेरिका और यूक्रेन के विरोध का असर नहीं, ट्रम्प की जीत पर दांव खेल रही सरकार

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9 मिनट पहले

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जुलाई को रूस के दौरे पर गए थे। जिसके बाद यूक्रेन और अमेरिका ने इस दौरे की आलोचना की थी।  - दैनिक भास्कर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जुलाई को रूस के दौरे पर गए थे। जिसके बाद यूक्रेन और अमेरिका ने इस दौरे की आलोचना की थी।

8 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी रूस के दौरे पर पहुंचे। मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले तो दोनों नेताओं ने एक दूसरे को गले लगा लिया। इसकी चर्चा पश्चिमी दुनिया और यूक्रेन सहित दुनिया भर में हुई।

अमेरिका ने भी मोदी की रूस यात्रा को लेकर आपत्ति जताई। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि वह रूस के साथ भारत के हितों के लिए चिंतित हैं। अमेरिका के एनएसए ने तो भारत को सलाह तक देते हुए कहा कि, रूस के साथ मजबूत संबंध भारत के लिए सही दांव नहीं है।

भारत में रूस के राजदूत एरिक गार्सिया ने यहां तक ​​कह दिया कि भारत को अमेरिका के साथ दोस्ताना संबंध में नहीं लेना चाहिए।

3 रूस दौरे की आलोचना का जवाब देने की वजहें हैं
मोदी के रूस दौरे का विरोध सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहा। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे बड़े खूनी हत्यारे को गले लगाना बेहद निराशाजनक है। इससे यूक्रेन में शांति के अनुभवों को झटका लगा है।

ऐसे में इस दौरे को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या भारत से राजनीतिक समीकरणों को देखकर कोई भूल हुई है।

अल जजीरा में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इसके जवाब तीन कारणों में छिपा हुआ है।

ये कारण हैं – भारत और रूस समानता का इतिहास, भारत की जटिल समानता को जन्म देने की क्षमता में विश्वास और इस दांव में कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सत्ता में वापस आ सकते हैं और रूस के खिलाफ अमेरिका की रुख को नरम कर सकते हैं।

ट्रम्प की वापसी पर दांव खेल रहा भारत
13 जुलाई को अमेरिकी राज्य पेंसिल्वेनिया में एक रैली के दौरान पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर जानलेवा हमला हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस हमले की निंदा करते हुए ट्रंप के जल्द स्वस्थ होने की कामना की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प को मेरे मित्र ट्रम्प बताया।

सीएनएन के मुताबिक इस साल नवंबर में अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को बढ़त मिलती दिख रही है। जून में हुई पहली राष्ट्रपति चुनाव के बाद 67% लोगों ने ट्रम्प को डेबिट का विजेता माना था। सीएनएन के ही एक सर्वेक्षण में 49% अमेरिकी लोगों ने ट्रम्प को राष्ट्रपति पद की पहली पसंद माना था।

ट्रम्प पर हुए हमले के बाद उनके प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा हुई है। इसका लाभ उन्हें चुनाव में मिल सकता है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रम्प अब तक राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार साबित हुए हैं।

ट्रंप जीते तो मोदी खुश होंगे, चीन पर होगा अमेरिका का ध्यान
अल जजीरा ने एक भारतीय अधिकारी के हवाले से लिखा है कि, ‘अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत लगभग निश्चित लग रही है।’ अगर ऐसा होता है तो इससे भारतीय प्रधानमंत्री खुश होंगे। विश्लेषकों के अनुसार ट्रम्प की जीत से भारत के ऊपर रूस से दूरी बनाने का दबाव कम हो जाएगा।

अल्बानी विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर क्रिस्टोफर क्लेरी के अनुसार ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के दौरान इस बात की चिंता कम होगी कि भारत और रूस के बीच किस प्रकार के संबंध हैं। इसके पीछे की वजह चीन को माना जा रहा है। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में मॉस्को के बजाय, अमेरिका के प्रतिद्वंदी चीन पर अधिक ध्यान दिया था।

मोदी और ट्रंप दोनों नेता एक साथ 2019 में हाउडी मोदी और 2020 में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में शिरकत कर चुके हैं।

मोदी और ट्रंप दोनों नेता एक साथ 2019 में हाउडी मोदी और 2020 में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में शिरकत कर चुके हैं।

रूस और अमेरिका के बीच संतुलन
सोवियत काल से ही भारत और रूस के संबंध अच्छे रहे हैं। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी दोनों देशों में घनिष्ठ संबंध बने रहे। रूस भारत को कई दशकों से हथियार उपलब्ध कराता आ रहा है। इनमें मिग और सुखोई जैसे लड़ाकू विमानों से लेकर एस-400 डिफेंस सिस्टम भी शामिल हैं।

यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात को बढ़ावा दिया है। आज रूस भारत का अहम तेल सप्लायर है। हालांकि पश्चिमी देश भारत के रूस से कच्चे तेल के आयात को लेकर आलोचनाएं हो रही हैं।

अल जजीरा के अनुसार, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी देशों को विशेषकर अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया है। इसकी एक बड़ी वजह चीन का बढ़ता कद भी है। पिछले कुछ सालों में भारत ने रूस पर बढ़ते हुए कम करने की कोशिश की है। वह अब अमेरिका और यूरोपीय देशों से आधुनिक उपकरणों को खरीद रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 सालों में 8 बार अमेरिका और 6 बार रूस का दौरा किया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 सालों में 8 बार अमेरिका और 6 बार रूस का दौरा किया है।

भारत ईमानदारी को समर्पित करने में सक्षम है
रिपोर्ट के अनुसार भारत के पास अमेरिका या अन्य देशों के साथ परेशानी में आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त साधन है। प्रोफेसर क्लेरी के अनुसार मोदी की रूस यात्रा के बाद अमेरिका में कम ही लोगों को इसे लेकर हैरानी हुई होगी।

प्रोफेसर कहते हैं कि भारत-अमेरिका संबंध का आधार मजबूत है। ऐसी चिनाई से उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। रूस जाने से पहले मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था।

अल जजीरा से बात करते हुए एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि भारत इस साल के अंत में क्वाड देशों के शिखर सम्मेलन को आयोजित करने की योजना बना रहा है। यह संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग के लिए बनाया गया है। चीन इसे चुनौती के रूप में देखता है।

इस साल के अंत में रूस के कजान शहर में ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन होने वाला है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मोदी की रूस यात्रा के दौरान इस सम्मेलन के लिए उन्हें आमंत्रित भी किया है। हालांकि ये देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री मोदी 3 महीने में दूसरी बार रूस की यात्रा पर जाएंगे या नहीं।

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