मो2 मिनट पहले
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
कुकी समुदाय की आइरीन महीने में एक बार अपने मैतेई बच्चों से मिलती हैं।
मॉक-मैती और कुकी समुदाय के बीच चल रही जातीय हिंसा को एक साल हो गया है। इस हिंसा से राज्य में दोनों समुदायों के बीच अंतरविरोध का संकट लगातार जारी है। जहां मैतेई इंफाल घाटी में रह रहे हैं वहीं कुकी समुदाय पहाड़ी क्षेत्र में शरण लेने को मजबूर हैं।
इस हिंसा का बड़ा हिस्सा मतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच अंतर आदिवासी जोड़ों को भी उठाना पड़ रहा है। मई 2023 से अब तक ऐसे ही करीब 200 लोग जान गंवा चुके हैं। जहां हजारों लोग प्रभावित हैं।
हिंसा से पहले तक डेमोक्रेट में बड़ी संख्या में दोनों समुदाय के बीच फिल्मी संबंध होते थे, लेकिन हिंसा के बाद अलग-अलग समुदाय से आने वाले कई जोड़ों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
बच्चे-पति से हर महीने 15 घंटे का सफर तय करके मिजोरम जाती है पत्नी
कुकी कम्यूनिटी से आने वाली आइरीन हाओकिप 42 साल की हैं। हाओकिप शादी के बाद इंफाल में रह रही थी। लेकिन हिंसा के बाद उन्हें कूकी बहुसंख्यक इलाक़ा खोईचाँदपुर वापस लौटा दिया गया। जबकि उनके पति, पांच साल का बेटा और तीन साल की बेटी इंफाल में ही रह रहे हैं।
हाओकिप ने पीटीआई को बताया, ”मेरे पति घर बनाने का काम करते थे। विष्णुपुर में जब वे मेरे साथी में काम कर रहे थे तब हमसे प्यार हो गया और 2018 में हमने शादी कर ली।
विष्णुपुर मैतेई बहुल इंफाल और कुकी बहुल चुराचांदपुर के बीच का हथियार क्षेत्र है जिसमें दोनों समुदाय के लोग रहते थे। हाओकिप का कहना है कि घाटी में हिंसा के बाद मैं सुरक्षा कारणों से माता-पिता के घर चंदपुर लौट आया। मेरे बच्चे मैतेई ऐसे में उनके साथ नहीं ला शोकेस हैं। अब महीने में एक बार 15 घंटे की यात्रा करके पड़ोसी राज्य मिजोरम अपने बच्चों से मिलते हैं। वहां पति और बच्चे भी हैं नेपोलियन।
हाओकिप बताते हैं कि मिजोरम में हर महीने एक बार अपने बिछड़े परिवार से नौकरी मिलती है, जैसे कई लोगों के लिए एकमात्र विकल्प बचा है।
11 महीने पहले बने पिता, बेटी को आज तक नहीं देखा
कुकी समुदाय से आने वाले लैशराम सिंह की कहानी भी हाओकिप से काफी झलकती है। लैशराम साल 2022 में अपनी पत्नी के प्रेगनेंसी का पता लगाने के बाद जून 2023 में अपने पहले बच्चे के जन्म का इंतजार कर रहे थे।
लेकिन मई में हिंसा भड़क उठी। जिसके बाद लैशराम को अन्य कुकी लोगों की तरह के तटों की ओर वापस जाना पड़ा। जबकि उनकी पत्नी अचनाबा जो मैतेई उन्हें इंफाल घाटी के राहत शिविर में शरण लेनि पाद में हैं। जहां जून 2023 में उनकी एक बेटी ने जन्म लिया। लैशराम जन्म के 11 महीने बाद भी अपनी बेटी से नहीं मिल सके हैं।
पति पर परिवार दूसरी शादी का दवाब बना रहा है
लैशराम की पत्नी अचनाबा से दूरी के कारण शादी टूटने की चिंता सता रही है। अचानाबा कहते हैं कि मेरा पति है लेकिन फिर भी मैं सिंगल मदर के तौर पर जिंदा रहने के लिए मजबूर हूं। वह कभी-कभी मुझे फोन करते हैं, मैं उन्हें तस्वीरें भेजता हूं लेकिन हमारे बीच बातचीत धीरे-धीरे कम हो रही है। मुझे डर है कि अगर लंबे समय तक ऐसा बताया जाए तो पति का परिवार उनकी शादी में किसी कुकी लड़की से करवा देगा। इस बात को लेकर अक्सर हम दोनों में झगड़ा भी होता है।
निर्मल एक कुकी हैं जो हिंसा के पहले तक महिला बाजार में दुकान चलाती थीं। लेकिन अब वे अपने भाई-भाभी के घर पर रहते हैं। उनका बेटा और पति इंफाल में रहता है। पति ने उन्हें पैसे भेजना शुरू कर दिया था लेकिन अब बंद कर दिया गया है।
अटल बताते हैं कि उनकी शादी को 15 साल हो गए हैं। हमारी घरेलू आय में मेरी दुकान का बड़ा हिस्सा था। लेकिन हिंसा के बाद से दुकान बंद है अब में छोटी-मोटी नौकरी करती हूं लेकिन मुख्य रूप से अपने भाई पर प्रतिबंध है। हालात नहीं सुधरे तो राहत शिविर में जाना चाहेंगे।
पेमा डिंपू एक मैतेई महिला और उनके पति कुकी हैं। डिंपू इंफाल घाटी में रहते हैं जबकि पति पहाड़ में हैं। डिंपू का मानना है कि इस रिश्ते को खत्म करने का अब एकमात्र रास्ता यही है कि हम किसी और राज्य में ग्राहक बस बनाएं। और एक नया जीवन शुरू करें।