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As soon as the rating goes down, workers are blocked | मर्जी से कमीशन कटता है, एक्सिडेंट का कवर नहीं मिलता: रेटिंग घटी तो ब्‍लॉक हो जाते हैं, 70 लाख गिग वर्कर्स की ये हैं कंडीशंस

Published:


2 दिन पहलेलेखक: उत्कर्षा गीतकार

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साल 2023 में आई बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की गिग इकोनॉमी कंपनी गिग वर्कशॉप का सबसे बड़ा हिस्सा है। साफ है कि भारत की तरह देवलपिंज़ पिगमेंट के लिए गिग या प्लैट फॉर्म वर्कर बेहद जरूरी हैं। साथ ही देश के पहाड़ों के लिए भी गिग वर्कशॉप एक बेहतर विकल्प है जैसा कि नजर आता है। क्योंकि इसमें कोई खास वेस्ट इंमेंट नहीं है और कोई नुकसान का डर नहीं है। आज इंटरनेशनल लेबर्स डे यानी इंटरनेशनल वर्कर्स डे के मौके पर बात इस गिग इकोनोमी में काम करने वाले गिग वर्कर्स की।

हजरत कहते हैं, कर्मचारी तक नहीं
ऐसे ही एक पीएल फॉर्म राडो के साथ पार्ट टाइम काम करने वाले दिल्ली के करण कहते हैं कि ये सभी प्लैट फॉर्म्स खुद को टेक एग्रीगेटर्स या मिडिएटर्स या फैसिलिटर्स कहते हैं और वर्कर्स को कर्मचारियों की जगह बेंगलुरु या मिनि-एंट्रेप्रेन्योर्स कहते हैं। लेकिन यहां मजदूरों के हाथ में कुछ नहीं होता. बैलेंस कैसे होगा, कितना कमिशन कटेगा, किस बात पर पेनल्टी का काम और कब किसी कर्मचारी के काम करने के लिए पात्रता नहीं रहती, यह सभी चीजें कंपनी के हाथ में होती हैं। साथ ही काम से उम्मीद की जाती है कि वो कंपनी के सभी नियम कायदों का पालन करें। लेकिन व्यवसाय के हक के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया है। ना ही वर्कर्स के पास अपनी बात कह सकने की जगह है।

रेटिंग कम होती ही कर देते हैं ब्लॉक
शहरी कंपनी में काम करने वाली भोपाल के ब्यूटीशियन राधिका ने बताया कि वो दिन में 8 से 9 घंटे काम करती हैं। इसके लिए वो 2 से 3 हजार रुपये तक का ऑफर देते हैं। इसके अलावा उनकी कंपनी की भी सबसे खास बात है। कंपनी की ओर से साफ किया गया है कि शेयरहोल्डर के पास जब भी उन्हें अनकंफर्टेबल लगाया जाएगा, तो वो अपना सामान ठीक करके वहां से तुरंत निकल सकते हैं। शहरी कंपनी ऐप में श्रमिकों के लिए एक एसओएस सुविधा भी है, जिसे दबाते ही उनके इंजेक्शन को लेकर सुझाव दिया जाता है।
हालाँकि, शहरी कंपनी में ही काम करने वाली शबाना ने कहा कि कंपनी ने कर्मचारियों से साफ कहा है कि उनकी रेटिंग 4.5 से कम नहीं होनी चाहिए। रेटिंग कम होती है तो श्रमिकों को ब्लॉक कर दिया जाता है।

अविश्वास से कमिशन कलाकार हैं, क्रांतिकारी होने पर कोई कवर नहीं
भोपाल में कुछ समय के लिए बाइक बेचने वाले रेडिएटर विकास मांडवी ने कहा कि कंपनी 20-22% तक कमिशन कटर लगी है। यानी 100 रुपये की सवारी पर राइडर के हाथ में सिर्फ 80 रुपये या कई बार भी कम लगते हैं। इसले के अलावा कस्टमर स्टूल लगा दे तो उसके संग्रहालय में भी मजदूरों को ही रखा जाता है। रैडो ऑल राइडर्स को 5 लाख रुपए का रिवॉर्ड मिल रहा है। लेकिन अगर किसी भी कारण से इंटरनेट में कोई गियरबॉक्स नहीं चल रहा है या ऐसे क्षेत्र में जहां नेटवर्क की समस्या है, तो कंपनी कवर नहीं करती है।
बनारस में ओला, बिजनेसार और रेडो के लिए कैब चलाने वाले नागेंद्र कहते हैं कि सभी उद्योगपति अच्छा-खासा कमिशन काटते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 30% कमिशन ओला कटती है। इसके बाद मजदूरों के हाथ में ज्यादा कुछ नहीं बचता। दिन में 10-12 घंटे कैब टिकट के बाद हजार-दो हजार रुपये ही बच पाता है। लेकिन अब इसमें कोई भी शामिल नहीं है क्योंकि ग्राहक अब ऐप से ही प्रेरणा लेना पसंद करते हैं।

काम के लंबे घंटे, थके रहते हैं ड्राइवर
मार्च 2024 में आईआईटी बैंगलोर ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर तैयारी की। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के वर्कशॉप कंडीशन्स की जारी ‘फेयरवर्क इंडिया 2023’ स्टडी में शामिल 43% वर्कर्स ने कहा कि 500 ​​रुपये से भी कम उनकी कमाई है। 34% ऐप बेस्ड वर्कर्स महीने में सिर्फ 10 हजार रुपये ही कमाते हैं। जबकि 78% वर्कर्स ने माना कि वे दिन में 10 घंटे से भी ज्यादा काम करते हैं।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि इस तरह की वर्कशॉप कंडीशन की वजह से मजदूर ज्यादातर थके हुए रहते हैं। इससे उनके रोड रॉकेट खतरा सबसे ज्यादा रहता है। 86% फ़्रॉमवर्क वर्कर्स ने कहा कि ’10 मिनट में फ़्रॉस्ट’ की मान्यता उन्हें नहीं है।

किसी भी चैनल के लिए ग्राहक को रिपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं है
41% ड्राइवर्स और 48% फ़्लोरिडा एजेंट्स का कहना है कि सप्ताह भर में वो एक दिन की भी छुट्टी नहीं ले पाते हैं। इसके अलावा जब भी किसी ग्राहक को कोई परेशानी हो तो वो श्रमिक आसानी से रिपोर्ट कर सकते हैं। इसके बाद कर्मचारियों को ब्लॉक भी कर दिया जाता है। मगर कस्टमर्स के मिसाबिहे वियर की रिपोर्ट करने के लिए उनके पास कोई जगह नहीं है। 72% ड्राइवर्स और 68% मार्टिस्ट एजेंटों ने कहा कि कस्टमर के गलत व्यवहार से उन्हें बुरा लगता है और उन्होंने कहीं भी शिकायत दर्ज नहीं कराई।

किसी भी ऐप प्लेटफॉर्म में मजदूरों को आवाज उठाने का हक नहीं
इस रिपोर्ट में सामने आया कि किसी भी एप के खिलाफ बेस्ड प्लेटफॉर्म में बैचलर बेसिस पर काम करने वाले वर्कर्स को कंपनी की आवाज उठाने का हक है। इनमें से कोई भी प्लेटफॉर्म अपने एप्लाय के साथ न तो को-ऑपरेट करता है और न ही उनका लाजवाब सामान होता है। शीर्ष पर रहने वाली बिगबास्केट के साथ सभी श्रमिकों के निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के मामले में शून्य स्कोर मिला है।

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